चाचा और चाची ने वासना के खेल में फंसाया

मेरा नाम कामना है और ये मेरी कहानी है. पहले में आप सबको अपने बारे में बताती हूँ. में १८ साल की हूँ और अपने चाचा चाची के साथ इस छोटे से गाँव में रहती हूँ. मेरे माता पिता एक कार एक्सीडेंट में मरे गए जब में १८ साल कि थी. हमारे परिवारमेरे चाचा चाची के अलावा और कोई करीब का रिश्तेदार नहीं था. Village XXX Story

शुरू में मुझे गाँव के माहौल में एडजस्ट होने में तकलीफ हुई पर समय के साथ मैंने समझौता कर लिया. में बचपन में शहर में एक अच्छे फ्लैट में पली बढ़ी थी किन्तु अचानक गाँव के माहौल में आना एक मानसिक तकलीफ का दौर था. यहाँ गाँव में न तो टीवी था न ही कोई मोबाइल फ़ोन और न ही गली के नुक्कड़ पर कॉफ़ी हाउस जहाँ में दोस्तों के साथ समय बिताया करती थी.

मेरा ज्यादातर समय चाचाजी के साथ खेतों पे गुज़रता था और जानवरों को चारा देने में. जब चाची मलेरिया की वजह से ज्यादा बीमार पड़ी तो खेतों की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी घर में और कोई औरत न होने की वजह से खाना मुझे ही बनाना पड़ता था. में अक्सर चाचाजी की चाची को खाना खिलाने में और उनके और दूसरे कामों में मदद किया करती थी.

और इन सब कामों में इतनी देर हो जाती थी की में अक्सर रात के १.०० के बाद ही सोने जा पाती. दिन भर के काम में शरीर इतना मैला हो जाता था की में रोज़ नहाने के बाद ही सोने जाती थी एक रात करीब १.०० के बाद में नहा कर बाहर निकली तो देखा की चाचाजी अपने कमरे से बाहर आ रहे थे “सब ठीक है न चाचा जी?’” मैंने उनसे पूछा.

“वैसे तो सब ठीक है पर पता नहीं क्यों आज नींद नहीं आ रही है.” चाचाजी ने खुद के लिए एक गिलास पानी भरते हुए कहा.

“क्या में कुछ आपके लिए कर सकती हूँ?” अपने गीले बालों को पोछते हुए मैंने पूछा.

उस समय चाचाजी ने मुझे ऐसी निगाहों से देखा जो में पहले कभी किसी मर्द में नहीं देखी थी.

“तुम्हे पता है की तुम्हारी चाची के साथ शादी हुए २५ साल हो गए है. हमारी कोई औलाद भी नहीं है. और जब दो लोग इतने साल साथ साथ रहते हैं तो आपस में एक कमी सी आनी शुरू हो जाती है.”

मैंने अपना घुटनो तक वाला गाउन पहन रखा था. मेरे बाल गीले थे और में अपनी टांगो को एक दूसरे पे चढ़ा चाचाजी के सामने बैठी उनकी बात सुन रही थी.

“खैर कामना अब तुम कोई एक नादान बच्ची नहीं हो. और जो में तुमसे कहने जा रहा हूँ मुझे लगता है की में तुमसे किसी भी हिचक के कह सकता हूँ.” चाचाजी ने कहा.

“चाचाजी आप जानते है की आप मुझसे कुछ भी कह सकते है.” मैंने जवाब दिया.

चाचाजी उठे और मेरे पास आकर बैठ गए. “हर इंसान की उसकी जरूरतें होती है…… और मुझ जैसे इंसान की…… तुम समझ रही हो न में क्या कहना चाहता हूँ?” उन्होंने पूछा.

पहले तो में कुछ समझी नहीं फिर सोचने के बाद जब मुझे समझ आया तो मेरे बदन में एक सिरहन सी दौड़ गयी “हाँ चाचाजी कुछ कुछ मैं समझती हूँ” मैंने जवाब दिया.

चाचा जी मुस्कुराये और उठ कर कमरे के परदे खिंच दिए “में जनता हूँ तुम एक समझदार लड़की हो मेरी बातों को जरूर समझ जाओगी.”

अचानक मैंने महसूस किया की कमरे में काफी अँधेरा हो गया था सिर्फ हलकी सी रौशनी कमरे के रोशनदान से अंदर आ रही थी “कामना अपना गाउन मेरे लिए उतार दो प्लीज” चाचाजी ने उत्तेजित आवाज़ में कहा. पहले तो मेरी समझ में नहीं आया की में क्या करूँ और क्या कहूं? चाचाजी की बात सुनकर में चौंक गयी थी.

फिर मैंने अपने कंपते हाथों से अपना गाउन के बटन खोल दिए जिससे मेरी चूचियां नंगी हो मेरी सांसो के साथ उठ बैठ रही थी “ओह कामना तुम वाकई में बहुत सूंदर हो और तुम्हारी चूचियां तो सही में भरी भरी है.” चाचाजी मेरी चूचियों को घूरते हुए बोले.

पता नहीं मैंने किस उन्माद में अपना गाउन कन्धों पर से सरका अपने पीछे कुर्सी पर गिर जाने दिया. जैसे ही गाउन मेरी पीठ को सहलाता हुआ पीछे को गिरा मेरे शरीर में एक सिरहन सी दौड़ गयी.

“खड़ी होकर मेरे पास आओ? में तुम्हारे बदन को छूना चाहता हूँ.”चाचाजी ने कहा.

में बिना हिचकिचाते हुए चार कदम बढ़ चाचाजी के सामने खड़ी हो गयी. कमरे में आती हुई हलकी रौशनी की परछाईं में मैंने देखा की उनका हाथ आगे बढ़ रहा था. मैंने उनके हाथों की गर्मी को अपनी चूचियों पर महसूस किया उनकी उँगलियाँ मेरे खड़े निप्पल से खेल रही थी.

“ओह कामना तुम कितनी सूंदर और सेक्सी हो आज कई सालों के बाद मेरा लंड इस तरह तन रहा है.” उन्होंने मेरी चूचियों को मसलते हुए कहा.

पता नहीं चाचाजी के हाथों में क्या जादू था की मेरे शरीर में एक उन्माद की लहर बह गयी. मेरी चूत पूरी गीली हो चुकी थी. में चुप चाप नज़रे झुके चाचाजी के सामने खड़ी थी इस सोच में की चाचाजी आगे क्या करते है. उसी समय मैंने उनके बदन की गर्मी को अपने नज़दीक महसूस किया. उनकी एक ऊँगली मेरी चूत में घुस चुकी थी.

“ओह्ह्ह्हह चचाआजी ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह आज तक मुझे यहाँ किसी ने नहीं छुआ है.” में जोर से सिसकी.

चाचाजी ने अपने दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़ मुझको अपने नजदीक खिंच लिया. उनके सांसो की गर्मी मेरे चेहरे को छू रही थी. उन्होंने अपने होठ मेरी चूचियों पर रख उन्हें चूमने लगे. एक हाथ से वो मेरी चूत में ऊँगली कर रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकडे हुए थे.

चाचाजी अब मेरे निप्पल को अपने होठों के बिच ले काट रहे थे और जब अपने दांतो से उसे काटते तो एक अजीब सी लहर मेरे शरीर में छ जाती. मैंने अपने हाथ बढ़ा अपनी उँगलियाँ उनके काले बालों में फंसा दी. जैसे जैसे उनकी जीब मेरे निप्पल पर हरकत करती मैं वैसे ही उनके सर को अपनी छाती पे दबा देती.

अब उन्होंने अपनी दो ऊँगली मेरे चूत में डाल दी थी. उनकी उँगलियाँ भी उनकी हथेली की तरह गरम थी और खूब लम्बी थी. जिस तेजी से उनकी ऊँगली मेरी चूत के अंदर बाहर हो रही थी उसी तेजी से मेरी सिसकारियां बढ़ रही थी. अचानक वो रुक गए और अपनी उंगलि मेरी चूत से बाहर निकाल ली और अपना चेहरा भी मेरी छातियों पे से हटा लिया.

“में अपना लंड तुम्हारी चूत में डालना चाहता हूँ.” वो मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोले.

“प्लीज एक बार आने चाचा को एक बार चोदने दो ये सिर्फ तुम्हारे और मेरे बिच रहेगा.”

में कैसे उन्हें मना कर सकती थी. कितने एहसान थे उनके मुझ पर. माता पिता के मरने के बाद उन्होंने ही तो मुझे सहारा दिया था और अपने साथ यहाँ ले आये थे. और मैं जानती थी की चाची को चोदे उन्हें कितना समय हो गया था उन्हें इसकी शायद जरुरत भी थी. यहि सब सोचकर मैंने उन्हें हाँ कर दी.

“तो फिर तुम घोड़ी बन जाओ” मेरे कानो में फुसफुसाते हुए बोले “में कबसे तुम्हारी चाची को इस आसान से चोदना चाहता था पर वो कभी हाँ ही नहीं करती थी.”

मैंने एक शब्द नहीं कहा और कुर्सी को कोना पकड़ घोड़ी बन गयी. चाचाजी बिना वक्त बर्बाद करते हुए मेरे पीछे आ गए. अपनी पेंट और शॉर्ट्स को उतार उसे मेरे गाउन के बगल में उछाल दिया. “हे भगवन में जो करने जा रहा हूँ उसके लिए मुझे माफ़ कर देना.” कहकर उन्होंने अपना खड़ा लंड मेरी चूत में घुसा दिया. जैसे ही उनके लंड मेरे कुंवारे पन को चीरता हुआ अंदर घुसा में दर्द से चीख पड़ी

“ओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह निकाआआ लीजिये प्लीज बहुत दर्द हो रहा है ओह्ह्ह में मर गयी .”

“बस थोड़ा सहन करो फिर तुम्हे मज़ा आने लगेगा” कहकर चाचा जी मेरी चूचियों को भींचने लगे और अपने लंड को अंदर बाहर करने लगे. दर्द अब कम होने लगा था और मुझे भी मज़ा आने लगा था तब मुझे अहसास हुआ की चाचाजी का लंड कितना लम्बा और मोटा था.

उनका लंड मेरी बच्चे दानी पर ठोकर मार रहा था. अब मेरे मुंह से सिसकारिया फूट रही थी. “हाआआआं चाचाजी करते जाइये मज़ा आ रहा है. हाआआआं जोर से और जोर सीईई हाँ ऐसे ही” में भी अपने चुत्तड़ आगे पीछे कर उनका साथ देने लगी.

“हाआआआं ले मेरे लंड को अपनी चूत में और जोर से ले.” चाचा जी बोले

“कामना तुम्हारी माँ की चूत भी इतनी कसी हुई नहीं थी जब वो१८ साल की थी.”

उनकी बात सुन में जड़ सी हो कर रह गयी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था की चाचाजी मेरी माँ जब १८ साल की थी तो उसे चोद चुकेथे जैसे वो अब मुझे चोद रहे थे.

“मुझे याद है तुम्हारी माँ की चूत कसी हुई नहीं थी इसलिए मैं अक्सर उसकी गांड मार देता था. तुम मानोगी नहीं वो इतनी चुड़क्कड़ औरत थी की किसी से भी चुदवा लेती.” चाचा जी अपनी धक्कों की रफ्तार बढ़ाते हुए बोले.

उनके हर धक्को के साथ उनके हाथों की पकड़ मेरे चुत्तड़ पर और मजबूत हो जाते. मैंने उनके लंड को अपनी चूत में फूलता हुए महसुस किया.

“ओह चाचाजी आपका लंड मेरी चूत में कितना लम्बा और मोटा लग रहा है.” में सिसकते हुए बोली.

“ममममममममम इसी तरह अपने चाचा से गन्दी गन्दी बातें करो वो गीडगिडाते हुए बोले.

और मेरी चूत की जम कर चुदाई करने लगे. में अपनी आँखें बंद कर गंदे से गंदे शब्दों के बारे में सोचने लगी. पता नहीं कैसे मेरे मुंह से इतनी गन्दी बातें निकल रही थी जैसे “हाँ चोदिये मुझे अपना पूरा लंड मेरी गांड में डाल दीजिये चोद चोद के मुझे अपने बच्चे की माँ बना दीजिये………” वैगरह वैगरह.

“ओह्ह्ह्हह्ह हाआआआआ मेरा छूटने वाला है मेरी बच्ची आज तुम्हारा चाचा तुम्हारी चूत को अपने लंड के पानी से भर देगा.” वो जोर से सिसके.

उनके धक्के इतने तेज हो गए थे के अपनी टांगो पे खड़ी नहीं हो पा रही थी. मेरी कमर और टांगो में दर्द होने लग रहा था पर में उन्हें रोकना नहीं चाहती थी. जितना इस चुदाई में मज़ा आ रहा था आज तक जिंदगी में मुझे कभी नहीं आया था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“ओह्ह्हह्ह्ह्ह हाआआआआअ ये लो” इतना कहकर उनके लंड ने एक पिचकारी से मेरी चूत में छोड़ दी. मुझे लगा की मेरी चूत भर सी गई है. मेरा शरीर जोर से कांपा और मेरे मुंह से सिसकारी निकल पड़ी “ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह भगवान ओह्ह्ह्हह्हह चाचाजी.”

मैंने अपने आपको और पीछे की और धकेल उनके लंड को अपनी चूत में जोरों से भिंच लिया. में पसीने से लथ पथ हो चुकी थी और मेरा सर चकरा रहा था. हम दोनों की सांसे उखड़ी हुई थी और दिल की धड़कन इतनी तेज थी कि साफ सुनाई दे रही थी.

“कामना तुम कितनी अच्छी लड़की हो. तुम नहीं जानती की मुझे इसकी कितनी जरूरत थी.” वो अपनी उखड़ी सांसो पे काबू पाते बोले.

“में आज से आपकी हूँ पूरी तरह से.” मैंने धीरे से कहा.

“ये तुम क्या कह रही हो?” उन्होंने पूछा.

“हाँ में सच बोल रही हूँ. में आपकी दासी बनके रहना चाहती हुँ आप जब चाहे मुझे एक गुलाम की तरह चोद सकते हैं.” मैंने सीसकते हुए कहा.

चाचाजी को मेरी बात बहुत अच्छी लगी शायद मेरी उम्र की वजह से. मेरी कसी चूत शायद उनके लंड को खड़ा कर देती थी. उस रात हम लोगो ने दो बार और चुदाई की. एक बार रूम में और दूसरी बार उनके कमरे में जमीन पर. चाची हमसे चंद क़दमों के फैसले पे बिस्तर पे सो रही थी.

पता नहीं हमने ऐसा क्यों किया पर मैं पहली बार वहीँ उनके कमरे में झड़ी और तब मुझे पता चाला कि औरत की चूत जब पानी छोड़ती है तो कितना मज़ा आता है. जब में चाची का ख्याल रखती तो मुझे इस बात का जरा भी अफ़सोस नही होता था की में चाचा से चुदवाया है और न ही शर्मिन्दगी महसुस होती थी.

बल्कि में तो सोचती थी की अगर चाची अच्छी होती तो शायद उन्हें हमारी चुदाई देखने में मज़ा आता और क्या पता वो भी साथ शामिल हो चुदवाती. दूसरी सुबह में रोज की तरह जल्दी उठी और काम में जुट गयी. घर की सफाई करने के बाद में आँगन की सफाई कर रही थी.

रात के हालात अब भी मेरे जेहन में थे. अब भी मुझे ऐसा लगता कि चाचाजी के हाथ मेरे शरीर पर है. उनका लंड मेरी चूत में घुसा हुआ है जैसे वो कभी मुझसे दूर गए ही नहीं. में मादकता के एक नए दौर में पहुँच चुकी थी. “आज तुम्हारा ध्यान कहाँ है कामना?” मेरी चाची की आवाज़ आई.

“क्क्कक्यायायायाया” मैंने हड़बड़ा के देखा.

“ओह चाची आप इस वक्त यहां पे होंगी मुझे पता नहीं था. आप कैसा महसूस कर रही है इस वक्त.” मैंने पूछा.

“पहले से बेहतर है.” चाची ने जवाब दिया.

“बस खुली हवा में सांस लेने चली आयी तुम तो जानती ही हो की तीन महीने हो गए उस कमरे में बंद पड़े हुए.”

“आओ में आपको आपके कमरे तक छोड़ देती हूँ मैंने चाची को सहारा देते हुए कहा.

मैंने उन्हें सहारा दे उनके कमरे में पहुंचाया और उन्हें बिस्तर पे बिठा दिया.

“इधर मेरे पास आके बैठो में तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ.” चाची ने मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा.

में उनके बगल में जाकर बैठ गयी. में अब भी दुविधा में थी कि पता नहीं वो मुझसे क्या बात करना चाहती है.

“कामना तुम बहुत ही खूबसूरत लड़की हो.” वो मेरे बालों को सहलाते हुए बोली.

“और खूबसूरती अक्सर लोगो को आकर्षित करती है पर याद रखना की किसी गलत व्यक्तित्व को आकर्षित न कर बैठो.”

“आप क्या कह रही है मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है.”

चाची अब बिस्तर पर लेट चुकी थी और उनकी आंखे चेहरे पे कठोरता चढ़ती जा रही थी. अचानक उन्होंने मेरे बालों को जोर से पकड़ लिया. मैंने अपने आपको लाख छुड़ाने की कोशिश की पर कामयाब न हो सकी.

“चाची छोड़ो मुझे मुझे दर्द हो रहा है” मैंने अपने बालों को उनके हाथों से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मुझे पता है तुम कल रात यहाँ पर थी” मेरे बालों को और मजबूती से पकड़ते हुए चाची ने कहा.

“कामना मुझे पता है तुम और तुम्हारे चाचा क्या कर रहे थे.”

“चाची ये आप क्या कह रही है.”

“मेरे सामने बच्ची बनने की कोशिश मत करो में बीमार हूँ कोई बेवक़ूफ़ नहीं.” वो गुस्सा करते हुए बोली.

इतने में चाचाजी ने कमरे में कदम रखा जैसे उन्हें पता हो कि मुझे उनकी जरुरत है.

“कामना तुम घर का काम छोड़ यहाँ क्या कर रही हो?” उन्होंने पूछा.

“कुछ नहीं चाचाजी बस जरा चाची से बात कर रही थी.” मैंने जवाब दिया.

चाची अचानक बिस्तर पर तन कर बैठ गयी. पहले तो उन्होंने ग़ुस्से में मेरी और देखा फिर चाचा की ओर.

“क्या तुम दोनों को अपने बदन की महक इस कमरे में महसूस नहीं होती” वो गुस्से में बोली.

“मुझे पता है तुम दोनों ने कल रात यहाँ पर क्या किया. मुझे आवाजें आ रही थी सिसकारियां सुनाई दे रही थी और तुमने किस तरह अपना बीज अपने ही बैडरूम में इसकी चूत में बोया ये भी पता है.”

“डार्लिंग मैं नहीं जनता तुम क्या कह रही हो. कामना हमारी भतिजी है में इसके साथ कोई गलत काम नहीं करूँगा.” चाचाजी ने जवाब दिया.

चाची ने घूर कर मेरी तरफ देखा. मुझे आश्चर्य हो रहा था कि चाची वो सब कुछ कैसे सुन सकती थी. उनकी दवाइयां अक्सर उन्हे बहोशी के आलम में पहुंचा देती थी. में नर्वस हो बहुत बेचैन महसूस कर रही थी की पता नहीं वो अब क्या कहेंगी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“कामना तुम एक दम एकदम अपनी माँ की तरह रंडी हो.” वो गुर्राते हुए बोली.

इतना सुन चाचाजी का चेहरे सफ़ेद पड़ गया. वो ये ही समझते थे कि मेरी माँ और उनके सम्बन्ध के बारे में कोई नहीं जनता है.

“हाँ राकेश ये सही है. मुझे सब पता है मुझे उसकी डायरी हाथ लग गयी थी. मैंने हर वो बात पढ़ी है जो उसने लिखी थी हर वो गन्दी बात. वो भगवन से डरती थी और उसे पता था की उसने गुनाह किया है इसिलए वो भगवान से अपने गुनाह की माफ़ी माँगा करती थी. पर उसे अपने देवर से चुदाने में मज़ा आता था.” चाची एकदम गुस्से में बोली.

चाचाजी एकदम चुपचाप बैठे थे जैसे उनके मुंह में जबान ही नहीं. साथ ही उनके चेहरे पे गुस्सा भी था की चाची ने ये बात इतने साल तक उनसे छुपा के रखी.

“तुम एक कुतिया हो सीमा और आज तक मैंने तुम्हे अपनी जिंदगी से नही निकाला क्यों की तुम्हारा ख्याल रखना में अपना फ़र्ज़ समझता था.” चाचाजी भी गुस्से में बोले.

“हाँ मैंने अपनी भाभी को चोदा और जब मौका मिला तब चोदा लेकिन सिर्फ इसलिए की तुमने मुझसे अपना मुँह फेर लिया था. तुम सेक्स नहीं करना चाहती थी और तुमने बंद कर दिया. एक बार भी मुझसे ये नहीं पूछा की में सेक्स के बिना कैसे रह पाता हूँ.”

“हर चीज़ का इलज़ाम मुझ पर मत दो तुम जानते हो में एक बीमार औरत हुँ.” चाची सुबकते हुए बोली. “हाँ एक तरीका है जिससे तुम दोनों अपना सम्बन्ध जारी रख सकते हो.”

में और चाचाजी दोनों उत्सुक थे के ऐसा क्या तरीका है जो हमें हमारी ही कब्र से बाहर निकल सकता था जो हमने खुद खोदी थी.

“क्या तुम दोनों एक दूसरे को पसंद करते हो?” चाची ने पूछा.

हम दोनों इस सवाल के लिए तैयार नहीं थे इसी लिए समझ में नहीं आया की क्या जवाब दे. मैंने चाचाजी की और देखा तो पाया की उनक लंड तन कर खड़ा हो गया था और मेरी भी चूत में खुजली मच रही थी की कब में उनका लंड अपनी चूत में लू.

“हाँ” हम दोनों ने साथ में जवाब दिया.

“तो फिर आज इसे फिर से चोदो यहीं मेरी आँखों के सामने चोदो.” चाची ने कहा “अगर तुम दोनों चुदाई करना चाहते हो तो वही करोगे जिस्से में तुम दोनों को देख सकू.”

“मगर ये कैसे हो सकता है” मैंने कहा.

“में कुछ नहीं सुन्ना चाहती एक दूसरे को छूना नहीं और तुम बिस्तर का किनारा पकड़ घोड़ी बन जाओ और चेहरा मेरी तरफ रखो जिससे में तुम्हारी चुदाई को देखती रहु.”

मेरा सर घूम रहा था. में इस चीज़ के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थी. अभी थोड़ी देर पहले में अपनी चाची को बिस्तर पे लिटा रही थी की वो सो सके और अब वो मुझे देखना चाहती थी की में अपने ही चाचा से कैसे चुदवाती हूँ. “जल्दी करो” वो चिल्लाई.

चाचाजी और में खड़े हो कर सीमा के बेड के पास आ गए. हम दोनो के चेहरे पे आश्चर्य के मिले जुले भाव थे पर अंदर से हम दोनो के शरीर में आग लगी हुई थी. में बिस्तर का कोना पकड़ घोड़ी बन गयी. मैंने अपने हाथों से अपनी पेंटी उतार दी थी और मेरे चुत्तड़ ऊपर की और उठ गए थे. फिर कल रात की तरह में चाचा के हाथों की गर्मी अपने चुत्तड़ पर महसुस की.

“अब जल्दी से बताओ की तुम दोनों ने कल रात क्या और कैसे किया?”चाची बोली.

मेरी ऑंखें बंद थी जब चाचा ने अपना लंड मेरी चूत में घुसाया. पर कल रात जिस तरह धीरे से घुसाया था उसकी जगह इतने जोर का धक्का मारा की एक ही धक्के में उनका लंड मेरी चूत में जड़ तक समां गया. मुझे इतना अच्छा लगा की मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी.

आज उनका लंड मेरी चूत की उन गहराईयों तक जा रहा था जो कल रात को न जा सका था. पर आज उनकी चुदाई में एक मकसद था वो चाची को बताना चाहते थे की आज भी उनके लंड में उतनी ही  ताकत है. “सीमा तुम्हे मज़ा आ रहा है न?” चाचाजी ने अपनी उखड़ती सांसो में पूछा.

“अपनी भतीजी की चुदाई तुम्हे अच्छी लग रही है न?” चाची ने कोई जवाब नहीं दिया. यहाँ तक की कोई आवाज़ भी नहीं हुई. मैंने अपनी आँख खोली तो देखा की चाची ने अपने ऊपर पड़ी कम्बल को हटा दिया था और उनकी टांगे फैली हुई थी. उनके चेहरे पर अब गुस्से की जगह उत्तेजना की झलक दिखाई पड़ रही थी.

चाचाजी अब मुझे और जोर से चोद रहे थे. उन्होंने ने मुझे थोड़ा सा आगे की तरफ धकेलते हुए कहा “कामना अपने चेहरे को बिस्तर के साथ लगा दो.” उन्होंने जैसा कहा मैंने किया. मैंने अपने शरीर को थोड़ा सा बिस्तर पर टिका अपने चेहरे को पूरा झुका दिया. मेरे चुत्तड़ हवा में उठ गये थे और चाचाजी ने अचानक मेरे चुत्तड़ पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया.

वो धक्के लगते जा रहे थे साथ ही मेरे चुत्तड़ पर थप्पड़ मार रहे थे. उनके मुंह से गुर्राने की आवाज़ आ रही थी जैसे एक जानवर के मुंह से आती है. मैंने बेड को हिलते हुए महसूस किया. नज़र उठा देखा तो पाया कि चाची मेरी और खिसक रही थी. उनकी टांगे अभी भी फैली हुई थी. में सोच में पड़ गयी पता नहीं अब क्या होने वाला है.

“हाँ सीमा आगे बढ़ो” चाचाजी बोले “आज तुम साबित कर रही हो कि तुम मेरी बीवी हो.”

अचानक चाची ने पहले से भी ज्यादा जोर से मेरे बालों को पकड़ मेरे चेहरे को उठाया. मेरे चेहरा उनकी चूत से चंद ही दुरी के फासले पर था. में समझ गयी की वो क्या चाहती है. “सीमा जैसे इसकी माँ तुम्हारी चूत चूसा करती थी वैसे ही इससे अपनी चूत चुसवाओ?” चाचाजी बोले.

तब मुझे एहसास हुआ की ये इन दोनों की मिली भगत है. अब मुझे पता चला की जब चाची मुझपर इलज़ाम लगा रही थी तो अचानक चाचा कैसे आ गए. ये दोनों ने मिलकर प्लान बनाया था. “चूस मेरी चूत को रंडी की औलाद चाची ने मेरे मुंह को अपनी चूत पर दबाते हुए कहा.

इससे पहले की में न या कुछ और कहती मेरा मुंह उसकी चूत पे जम चूका था. उसकी पकड़ मेरे बालों पे इतनी मजबूत थी की मेरे पास उसकी चूत चाटने के आलावा कोई चारा भी नहीं था. चाचाजी मुझे इतने कस के चोद रहे थे की उनके थापो की आवाज़ पुरे कमरे में गूंज रही थी.

“हाँ चाट अपनी चाची की चूत को तबतक तेरे चाचा तेरी चूत का भोसड़ा बना देंगे.” चाची अपने चुत्तड़ उठा मेरे मुंह पे मार रही थी. में हैरान थीकि ४५-५० साल की उम्र में इन लोगो ने ये सब कब सीखा. इनकी हरकत किसी ब्लू फिल्म के अदाकारों की तरह थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“ओह कामना तुम ठीक अपनी माँ की तरह मेरी चूत को चूस रही है. याद है राकेश इसकी माँ इसी तरह मेरी चूत को चाटा और चूसा करती थी.” कहकर चाची ने और जोर से मेरे सर को अपनी चूत पे दबा दिया.

“हाँ डार्लिंग मुझे अच्छी तरह याद है.” चाचा ने जोर के धक्के मारते हुए कहा.

में अब जोर से चाची की चूत को चूस रही थी. में अपनी जीभ को नुकीली कर चाची की चूत में अंदर तक डाल देती और फिर अंदर बाहर करने लगती. कभी उसकी चूत की पंखुड़ियों को अपने दांतों में भींच हलके से काट लेती. मेरी हर हरकत से उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ती. अचानक चाचाजी ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकल लिया.

वो मेरी गांड सहलाते हुए बोले “कामना अब में तुम्हारी गांड मारना चाहता हूँ.” मैंने न कहना चाहा पर चाची की मेरे बालों की पकड़ इतनी मजबूत थी की में कुछ न कर सकी. मेरे पांव काम्प रहे थे इसी ख्याल से की मेरी गांड का क्या होगा. मुझमे हिम्मत नहीं थी की में दोनों को रोक पाती.

चाचा ने अपना लंड मेरी गांड पे थोड़ी देर घिसा और फिर एक ही धक्के में ही पूरा पेल दिया. दर्द के मरे मेरे मुंह से चीख निकल पड़ी “ओह्ह्ह्हह्ह्ह्हह मर गयी.” चाचा के धक्कों की रफ़्तार बढ़ती गयी और चाची अपनी चूत को मेरे मुंह पे और रगड़ रही थी. “सीमा छोड़ दो अपना पानी इसके मुंह में.” कहकर चाचा और जोर से धक्के लगाने लगे.

थोड़ी हे देर में चाची ने अपना पानी मेरे मुंह पे छोड़ दिया. मेरी अपनी चाची अपना पानी मेरे मुंह पे छोड़ चुकी थी और मेरे चाचा का दबाव मेरे चुत्तड़ पर बढ़ता जा रहा था. में समझ गयी की उनका भी छूटने वाला है. दो तीन धक्को में चाचा ने अपना वीर्य मेरी गाँड में उंडेल दिया.

में थोड़ी देर बाद उठी और कमरे के बाहर चली गयी. में किचेन में काम कर रही थी की चाचाजी आये और मुझे पीछे से बाँहों में भर लिया. “कामना मुझे माफ़ कर दो. हम दोनों ने मिलकर तुम्हे इस खेल में फंसाया. तुम्हारी चाची अच्छी औरत है लेकिन शायद में उनकी जरुरत को पूरा नहीं कर सकता.”

“आपका मतलब है की उन्हें सेक्स की इच्छा तो है लेकिन बिना लंड के?” मैंने पूछा.

“हाँ कुछ ऐसा ही क्या तुम सम्हाल सकती हो?”

“सही बोलूं तो मुझे भी चूत चूसने में मज़ा आ रहा था.”

“तब तो ठीक है आगे और भी मौके आएंगे.” कहकर चाचा ने मुझे बाँहों में भर लिया.

और फिर यही होता रहा. हम तीनो हफ्ते में तीन बार बैडरूम में मिलते और एक दूसरे की काम अग्नि को शांत करते. कहावत है की जो होता है वो ऊपर वाले की मर्ज़ी से होता है. न ही मेरे माता पिता कि ड़ेथ कार एक्सीडेंट में होती और न ही में यहाँ अपने चाचा चाची के पास आती. में यहाँ आयी अपने चाचा को अपनी चाची को सुख देने. किसी को अपनी चूत से और किसी को अपनी जुबान से…

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