शाजिया के जिस्म में कामुकता की आग लगी 1

ये कहानी है शाजिया की। शाजिया के समर्पण की। मात्र 23 साल की शाजिया अपनी कमसिन काया से किसी भी मर्द के जिश्म में उबाल ला सकती थी। अमीर और बड़े घर में पली बढ़ी शाजिया की नई-नई शादी हुई थी। अभी वो मात्र 23 साल की थी और अपने जवान जिश्म और मन में ढेरों अरमान लिए वो अपने पति के घर आई थी। Madmast Jawani Sex

उसका पति शाहिद भी एक बैंक में काम करता था। शाजिया बेहद खूबसूरत और मासूम चेहरे वाली लड़की थी जिसका कमसिन जिश्म कातिल अंदाज का था। 32-26-34 के फिगर के साथ वो किसी को भी मदमस्त कर सकती थीं। शाजिया एक बेहद ही शरीफ लड़की थी और यकीन मानिए की उसका कभी किसी के साथ कोई चक्कर नहीं रहा।

बचपन से वो लड़कों को अपनी तरफ आकर्षित होता देखती आई है और इसे बहुत ही सलीके से वो इग्नोर करती आई है। शाजिया ऐसे साफ महाल में पली बढ़ी, जहाँ लोगों की मदद करना, शिष्टाचार से रहना सीखी थी। शाजिया की शादी के अभी तीन महीने ही हुए थे की उसके पति का ट्रांसफरर एक दूसरे शहर में हो गया।

शाजिया अपने जिंदगी से पूरी तरह खुश थी और उसे अपने जीवन से कोई समस्या नहीं थी। ये तीन महीने बड़े ही मजे से गुजरे थे शाजिया के पति के साथ एक शानदार हनीमून मनाकर लौटी थी शाजिया। एक लड़की को जो जो चाहिए था सब मिला था उसे। शाहिद हैंडसम था और बहुत केयरिंग था।

वो भी शाजिया जैसी हसीन बीवी पाकर बहुत खुश था और दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। शाहिद नये शहर में जाय्न तो कर चुका था, लेकिन सही घर ना मिल पाने की वजह से वो शाजिया को अपने साथ नहीं ला पाया था। दोनों के दिन और रात बड़ी बैचैनी से कट रहे थे।

किसी तरह शाहिद ने एक सप्ताह गुजारा और एक घर किराये पे ले लिया। हड़बड़ी में शाहिद को कोई घर मिल नहीं रहा था तो उसके बैंक के चपरासी जय ने उसे एक घर बताया जिसे शाहिद ने आनन-फानन में देखकर पसंद भी कर लिया और अड्वान्स देकर किराये पे ले लिया।

शाहिद ने जो घर किराये में लिया था वो एक हिंदू का घर था। एक 50 साल का हिंदू मर्द शंभू जो अकेला रहता था। उसका घर बहुत बड़ा सा था और उसने शंभू को अपने घर का पूरा ग्राउंड फ्लोर किराये पे दे दिया था। ऊपर आधे छत पे दो बेडरूम हाल किचेन था जिसमें शंभू खुद अकेला रहता था। बाकी आधी छत खाली थी।

सीढ़ी से चढ़ते ही लेफ्ट साइड में एक छोटा सा रूम था जिसमें बस कचरा भरा हुआ था। उसके बाद खाली जगह थी जहाँ कपड़े सुखाने की जगह थी और उसके बाद शंभू का रूम था। पूरे छत पे 4 फुट की बाउंड्री की हुई थी। नीचे का पूरा ग्राउंड फ्लोर शाहिद और शाजिया को मिल गया था। 4 बेडरुम, बड़ा सा डाइनिंग हाल, किचेन सब मिल गया था शाहिद को और वो भी बहुत कम किराये में।

शाजिया भी शाहिद के साथ नये शहर और नये घर में शिफ्ट हो गई। शाजिया बहुत खुश थी। उसके सास, ससुर, ननद नीलोफर और मम्मी, पापा और बहन शाजिया भी यहाँ आकर कुछ दिन रहकर गये। सबको घर बहुत अच्छा लगा लेकिन सबको एक ही प्राब्लम थी की ये हिंदू का घर है, लेकिन शाहिद ने सबको समझा लिया था।

शाजिया बेहद हसीन थी और अमीर और खुले विचारों के घर के होने की वजह से उसके कपड़े भी माडर्न टाइप के होते थे। हालाँकी वो ट्रेडीशनल और एथनिक इंडियन कपड़े ही पहनती थी। लेकिन फिर भी उनमें थोड़ा खुलापन होता था। उसके लिए तो ये सब नार्मल बात थी, लेकिन लोगों को तो वो अप्सरा, परी, हूर नजर आती थी।

नई- नई शादी होने की वजह से उसका जिश्म और खिल गया था और फुल मेकप और ज्वेलरी वैसे ही आग लगा देता था। दो-तीन महीने होते-होते शाजिया की खूबसूरती की चर्चा पूरे मुहल्ले में होने लगी। शाजिया जब भी घर से बाहर निकलती तो वो भीड़ में भी चमक जाती थी। लेकिन शाजिया इन सब बातों से बेखबर रहती थी और मजे से अपनी जिंदगी जी रही थी।

शाहिद भी ऐसी खूबसूरत बीवी पाकर बहुत खुश था। हालाँकी शाहिद ने उससे कहा था की जब तुम मार्केट जाती हो तो सब तुम्हें ही घूरते रहते हैं तो शाजिया का जवाब था की ये तो बचपन से हो रहा है मेरे साथ। इसमें मैं क्या कर सकती हूँ? शाहिद का मन हुआ की उसे बोले की ऐसे कपड़े यहाँ मत पहनो, लेकिन कहीं उसपे मीन माइंडेड होने का ठप्पा ना लग जाए इस डर से वो कुछ बोल नहीं पाया।

शंभू यहाँ अकेला रहता था। उसके घर में कोई नहीं था। उसकी बीवी और बच्चे की एक आक्सिडेंट में मौत हो चुकी थी। उसकी एक जूते की दुकान थी और वो सुबह 9:00 बजे अपनी दुकान पे चला जाता था और दोपहर में एक बजे आता था। दो घंटे तक वो आराम करता और फिर 3:00 बजे चला जाता था। फिर वो रात में 8:00 बजे आता था। उसका रोज का यही नियम था।

शाहिद भी सुबह 9:00 बजे बैंक चला जाता था और फिर सीधे शाम में 6:00 बजे घर आता था। दोनों की जिंदगी बड़े प्यार और मजे से काट रही थी। दोनों फिर से एक सप्ताह के लिए बाहर से घूम आए थे। शाहिद और शाजिया दोनों में से कोई भी अभी बच्चा नहीं चाहता था, इसलिए शाजिया 6 महीने से प्रेगनेंसी रोकने वाली गोली खाती थी। दोनों की मर्जी अभी खूब मस्ती करने की थी।

शाजिया को यहाँ आए तीन महीने हो चुके थे और उन लोगों के जीवन का सफर मजे से काट रहा था। शाजिया अपने कपड़े को छत पे सूखने देती थी। शंभू जिस माले पे रहता था उसके सामने आधा छत खाली थी और कपड़े सूखने के लिए वही जगह थी। आज जब शाजिया अपने कपड़े लेकर अपने रूम में आई और उसे समेटने लगी तो उसे अपनी पैंटी कुछ हार्ड सी लगी। उसे कुछ खास समझ में नहीं आया।

शाजिया ने इग्नोर कर दिया। उसे लगा की शायद ठीक से साफ नहीं हुआ होगा। अगले दिन भी यही हुआ की उसकी पैंटी चूत के पास वाले हिस्से में काफी हार्ड जैसी हो गई थी। जब उसने गौर से अपनी पैंटी को देखा तो उसे लगा की कोई लिक्विड जैसी चीज पैंटी में गिरी है जो सूखकर इतना टाइट हो गई है।

इधर वो शाहिद के साथ सेक्स भी नहीं की थी तो फिर ये क्या है? उसे कुछ समझ में नहीं आया। शाजिया की पैंटी ब्रा भी मँहगी और डिजाइनर थी। अगले दिन नहाने के बाद वो पैंटी को अच्छे से साफ करके सूखने दी। अगले दिन उसकी पैंटी तो ठीक थी लेकिन उसकी ब्रा टाइट जैसी थी। शाजिया को समझ में नहीं आ रहा था की हो क्या रहा है?

आज शाजिया जो डिजाइनर पैंटी ब्रा पहनी थी वो बिल्कुल नई और फुल्ली ट्रांसपेरेंट थी। अगले दिन जब शाजिया छत से कपड़े उतारने गई तो उसकी गुलाबी ट्रांसपेरेंट पैंटी चूत के एरिया में पूरी तरह से टाइट थी। शाजिया जब गौर से देखी तो उसे किसी लिक्विड का दाग उसमें नजर आया। नई पैंटी जिसे वो अच्छे से धोई थी, दाग होने का सवाल ही नहीं था।

शाजिया उसे अच्छे से छूकर देखने लगी और फिर अपनी नाक के पास ले गई। एक अजीब सी गंध थी जो शाजिया को बहुत अच्छी लगी। शाजिया फिर से उसे सूँघने लगी, और पूरी तरह से उस गंध को अपने सीने में भरने लगी। दो-चार बार सूँघने पर भी उसका मन नहीं भरा तो वो फिर अपनी पैंटी को चाटकर भी देखी।

उसे बहुत अच्छा लगा लेकिन वो कुछ समझ नहीं पाई। शाजिया के दिमाग में बस वही खुश्बू और वही टेस्ट बसी थी। अगले दिन शाजिया थोड़ा जल्दी कपड़े को छत से ले आई और नीचे लाते ही वो अपनी पैंटी देखने लगी देखी तो पैंटी कुछ-कुछ गीली ही थी। आज भी उसपे लिक्विड गिरा हुआ था जो अभी पूरी तरह सूखा नहीं था।

शाजिया अपनी पैंटी को सूँघने लगी और आज उसे कल से भी ज्यादा अच्छा लगा। सूँघते सूँघते ही उसपे अजीब सा नशा जैसा छाने लगा और वो अपनी पैंटी पे लगे लिक्विड को चाटने लगी। शाजिया को बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन ये नहीं समझ में आया की ये आखिर है क्या? ना तो वो कभी अपने पति का लण्ड चूसी थी, और न ही शाहिद ने कभी उसे ऐसा कहा था।

शाहिद भी शाजिया की चूत को कभी चाटा नहीं था। शाजिया अभी तक कभी ठीक से पोर्न भी नहीं देखी थी। दो-चार बार उसकी सहेलियों ने उसे दिखाया था, लेकिन थोड़ा सा देखकर वो मना कर देती थी और कहती थी की छी: तुमलोग ये क्या गंदी चीज देख रही हो?”

शाजिया के मन में उस खुश्बू के टेस्ट की याद बस चुकी थी। वो पैंटी ब्रा को सुबह भी सूँघ कर देखी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। शाजिया अब बस शाम का इंतजार कर रही थी ताकी वो फिर से उस खुश्बू को अपने सीने में ले सके। अगले दिन शाजिया थोड़ा और जल्दी कपड़े को छत से ले आई।

उसकी पैंटी पूरी तरह गीली थी और उसपे गाढ़ा सफेद लिक्विड लगा हुआ था, जिसे देखकर उसका दिमाग सन्न रह गया की ये तो वीर्य है किसी का। उसकी शादी को 6 महीने हो चुके थे और वो अब वीर्य के कलर को तो जानती ही थी। पहले तो उसका मन घृणा से भर गया और उसे गुस्सा भी बहुत आया की कौन है वो कमीना गंदा इंसान जो इस तरह की नीच हरकत कर रहा है?

लेकिन इसकी खुशबू उसे बहुत अच्छी लगी थी तो वो वीर्य को फिर से सूँघने लगी और फिर मदहोश होकर उसे अपनी जीभ से भी सटा ली। फिर वो तुरंत ही अपनी जीभ हटा ली, लेकिन अब उसपे अजीब सा खुमार चढ़ चुका था, तो वो उसे धीरे-धीरे सूँघते हुए पूरी तरह चाटकर साफ कर ली।

उसे पहले भी बहुत मजा आया था, लेकिन आज ये सोचकर उसकी चूत गीली हो गई की वो किसी अंजान आदमी का वीर्य सूँघ और चाट रही है जो उसने अपने पति के साथ भी नहीं किया है। शाजिया के दिमाग में यही सब चलता रहा। शाजिया ने आज बेड पे पहली दफा पहल की और शाहिद से अपनी चुदाई करवाई।

लेकिन आज पहली बार उसे लगा की जितना मजा आना चाहिए था वो नहीं आया। उसे लगा की शाहिद को और अंदर तक डालना चाहिए था। उसे लगा की शाहिद को और देर तक उसकी चूत को चोदना चाहिए था। लेकिन वो कह ना सकी और करवट बदलकर उस वीर्य की खुश्बू को याद करती सो गई।

अगले दिन सनडे था और शाहिद घर पे ही था और शंभू चाचा कहीं बाहर गये हुए थे। आज शाजिया जब अपने कपड़े लेकर आई तो उसकी पैंटी ऐसे ही रह गई थी और शाजिया प्यासी ही रह गई आज उस खुश्बू के लिए। उसका मूड आफ हो गया।

शाहिद ने पूछा भी- “क्यों, क्या हुआ अचानक उदास हो गई?”

लेकिन शाजिया कुछ जवाब नहीं दी। रात में शाजिया फिर से चुदवाना चाहती थी, क्योंकी कल उसकी प्यास बुझी नहीं थी। लेकिन अपने संस्कारों और शर्मो-हया की वजह से वो शाहिद के सामने इजहार नहीं कर पाई। शाहिद अपनी प्यासी बीवी को यूँ ही छोड़कर सो चुका था।

अब शाजिया उस खुश्बू और टेस्ट के लिए पागल होने लगी थी। आज शाजिया दोपहर में छत पे जाकर सीढ़ी के बगल में बने स्टोररूम में जाकर छिप गई और देखने लगी की क्या होता है। कौन है जो अपना वीर्य मेरी पैंटी पे गिरा कर चला जाता है? थोड़ी देर में एक बजते ही शंभू अपने घर आया और अपने रूम में चला गया।

अपने रूम में जाते वक़्त उसने शाजिया की पैंटी ब्रा को देखा जो आज शाजिया ज्यादा अच्छे से फैलाकर टांगी थी। शाजिया के दिमाग में अभी तक शंभू का ख्याल नहीं आया था की ये ऐसा कर रहा होगा। शंभू को देखने के बाद उसे लगा की शंभू चाचा तो दो घंटे तक अपने रूम में रहेंगे, तब तक तो मैं यही फँसी रहूंगी।

उसे लगा था की वो छत पे छिपकर देखेगी की कौन उसकी पैंटी के साथ क्या करता है? लेकिन अब तो लग रहा था की उल्टा वही फँस गई हैं दो घंटे के लिए। कहीं शंभू चाचा की नजर मुझपे पड़ गई तो क्या सोचेंगे की मैं छिपकर उन्हें देखती हूँ। छिः। शाजिया वहाँ से निकलने का प्लान बना रही थी।

लेकिन शंभू के रूम का दरवाजा खुला था तो वो डर से स्टोररूम से बाहर नहीं निकल पा रही थी। थोड़ी देर बाद शंभू चाचा अपने रूम से लुंगी और गंजी में बाहर निकला। वो अपने लुंगी के ऊपर से लण्ड को सहला रहा था। उसने शाजिया की पैंटी को रस्सी से उतारा और मुँह में लेकर चूमने चाटने लगा, जैसे शाजिया की चूत चाट रहा हो।

उसकी लुंगी सामने से खुली थी जिसमें से उसने अपने लण्ड को बाहर निकाल लिया और दूसरे हाथ से आगे-पीछे करने लगा। शंभू पैंटी लेकर स्टोररूम के सामने आ गया, क्योंकी यहाँ से उसे कोई देख नहीं सकता था दूसरी छत से। शाजिया स्टोररूम के दरवाजे के पीछे थी और दरवाजे में बने सुराख से बाहर झाँक रही थी।

उसकी सांस ऊपर रुक गई थी की कहीं शंभू ने उसे देख लिया तो क्या होगा? शंभू दरवाजे के ठीक सामने खड़ा अपने लण्ड को आगे-पीछे कर रहा था। उसने शाजिया की पैंटी को अपने लण्ड पे लपेट लिया और आहह आहह.. करता हुआ मूठ मारने लगा। शंभू इसी तरह लण्ड सहलाता हुआ शाजिया की ब्रा के पास गया और उसे भी उठा लाया।

अब शंभू के एक हाथ में शाजिया की ब्रा थी जिसे वो ऐसे मसल रहा हो जैसे शाजिया की टाइट चूची मसल रहा हो। वो ब्रा को भी निपल वाली जगह को मुँह में लेकर चूसने लगा जैसे शाजिया की छोटी ब्राउन निपल को चूस रहा हो। शाजिया को बहुत गुस्सा आया की कितना गंदा है ये इंसान, जिसे वो इतनी इज्जत देती है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

लेकिन शंभू को ब्रा और पैंटी चूसते देखकर अंजाने में ही उसका हाथ अपनी चूत पे जा पहुँचा। उसे वहाँ पे चींटियां रेंगती हुई महसूस होने लगी। शंभू अपने लण्ड को शाजिया की पैंटी में लपेटकर मूठ मारे जा रहा था। थोड़ी देर में उसका पानी निकालने वाला था तो उसने ब्रा को नीचे गिरा दिया, और पैंटी को हाथ में लेकर ऐसे फैलाया जिससे की जिस जगह पे चूत रहती है वो जगह ऊपर आ गई।

शंभू ने पैंटी को हाथ में पकड़ा और अपना वीर्य पैंटी पे गिराने लगा। अब शाजिया को शंभू का लण्ड साफ-साफ पूरा साइज में दिखा और उसका मुँह खुला का खुला रह गया। इतना बड़ा और मोटा लण्ड भी होता होगा, ये इसने सोचा भी नहीं था। वो तो अपने पति के 3 इंच के लण्ड को ही देखी थी आज तक।

शंभू के लण्ड से मोटी सी धार निकली और शाजिया के पैंटी में जमा हो गया? इतना सारा वीर्य इतना तो शाहिद एक हफ्ते में भी ना निकल पाए? उसने शाजिया की पैंटी को वीर्य से भर दिया और उसे स्टोररूम की दीवाल से बाहर निकले लोहे के छड़ में टांग दिया और फिर उसने ब्रा के एक कप को भी वीर्य से भर दिया।

फिर लण्ड को ब्रा के दूसरे कप से ही अच्छे से पोछकर साफ कर लिया। शाजिया को सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था की कैसे इतने बड़े मोटे काले लण्ड से कितना सारा गाढ़ा सफेद वीर्य कैसे गिर रहा है और उसकी पैंटी और ब्रा को भर रहा है। शाजिया को नीचे कुछ गीलापन सा महसूस हुआ और उसे लगा की उसकी चूत गीली हो गई है।

शंभू ने ब्रा और पैंटी दोनों को अपनी-अपनी जगह पे अच्छे से टांग दिया और अपने लुंगी को ठीक करता हुआ अपने रूम में चला गया। शाजिया चुपचाप अपनी जगह में खड़ी थी लेकिन वो चाह रही थी की तुरंत ही जाकर अपनी पैंटी ब्रा को उठाकर नीचे ले जाए। लेकिन ऐसा करने में शंभू को पता चल जाता।

शंभू ने अपने रूम का दरवाजा बंद कर लिया और ऐसा होते ही तुरंत ही शाजिया भागकर नीचे चली गई और शंभू के जाने का इंतजार करने लगी। शाजिया से नीचे रहा नहीं जा रहा था और वही दृश्य उसकी आँखों के सामने चल रहा था, जिसमें शंभू के लण्ड से वीर्य बाहर निकल रहा था और शाजिया की पैंटी को गीला कर रहा था। शाजिया नाइट सूट वाले टाप और ट्राउजर में थी।

उसे याद आया की इस पैंटी पे भी उसने इसी तरह अपना वीर्य गिराया होगा, जो उसकी चूत से सटा हुआ है। ये सोचते ही की शंभू का वीर्य उसकी चूत से सटा हुआ है वो और गीली हो गई। शाजिया सोफा पे लेट गई और उसका हाथ उसकी पैंटी के अंदर चला गया और वो अपनी चूत को सहलाने लगी, जो की गीली हो चुकी थी।

शाजिया को अच्छा लग रहा था और उसकी उंगली उसकी चूत में जा घुसी और वो हस्तमैथुन करने लगी। ये काम वो पहली बार कर रही थी अपने जिंदगी में शाजिया बैठ गई और अपने ट्राउजर और पैंटी को पूरा नीचे करके एंडी के पास कर दी और अच्छे से दोनों जांघों को फैलाकर दोनों तलवों को सटा ली।

शाजिया की चूत अब अच्छे से फैल गई थी और वो अपनी बीच वाली उंगली को पूरी तरह जल्दी-जल्दी अंदर-बाहर कर रहीं थी। आज तक ऐसी आग वो महसूस ही नहीं की थी। शाजिया एक हाथ से अपनी ब्रा को ऊपर की और चूचियों को जोर-जोर से मसलने लगी। वो पागल हुई जा रही थी।

उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और वो ऐसे ही सोफे पे लेट गई। शाजिया की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी। चूत से पानी निकलते ही शाजिया के अंदर के संस्कार और शरीफ औरत जाग गई और उसे बुरा लगने लगा की ये क्या कर रही थी वो? आज पहली दफा वो अपनी चूत में उंगली डाली थी और इस तरह अपने कपड़े उतारकर ऐसी हरकत की थी।

शाजिया सोचने लगी- “मैं एक शादीशुदा औरत हूँ और किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है और मैं तो दूसरे मर्द के बारे में सोचकर अपनी चूत से पानी निकल रही थी..” उसे अपने आप पे बहुत गुस्सा और घिन आने लगी। उसे शंभू पे भी जोरों से गुस्सा आने लगा की कैसा घटिया नीच गिरा हुआ इंसान है, जो अपने से आधी उम्र की औरत के बारे में ऐसी घटिया बात सोचता है और ऐसी घटिया हरकत करता है।

उसने फैसला कर लिया की ये बात शाहिद को बताएगी और अब हम इस घर को खाली करके कहीं और किराये पे रहेंगे। शाजिया एक घंटे तक शंभू के बारे में ही सोचती रही- “सच में ये लोग ऐसे ही होते हैं। क्या जरूरत थी शाहिद को यहाँ घर लेने की। एक सप्ताह और दूर रहते हम तो क्या हो जाता? लेकिन कम से कम घर तो मुस्लिम कम्यूनिटी में मिल जाता। कुछ पैसे और लगते तो क्या हुआ??

सोचते-सोचते उसके अंदर से शैतान की आवाज आई तो क्या मुस्लिम कम्यूनिटी में लोग उसे अच्छी नजरों से देखते? क्या वो लोग मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचते? वो भी सोचते। ये मर्द जात होती ही ऐसी है की जहाँ हसीन औरत दिखी नहीं की उनके लण्ड टाइट हो जाते हैं।

शाहिद ही शरीफ है क्या? उस दिन उस दुकान में उस लड़की को कैसी ललचाई नजरों से देख रहा था। सारे मर्द एक जैसे होते हैं। और कम से कम जो भी है वो शंभू चाचा के मन में है। उन्होंने कभी मेरी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा?” शाजिया की सोच फिर से आगे बढ़ी- “शंभू नजर उठाकर कहाँ देखते हैं, लण्ड उठाकर देखते हैं। वो तो मजबूर हैं, अगर बस चले तो नंगी ही रखे मुझे और दिन रात चोदता रहे। घटिया इंसान उसे ऐसा सोचते हुए भी शर्म नहीं आई। उसकी बेटी की उम्र की हूँ मैं?”

फिर से शैतान ने शाजिया को आवाज लगाई- बेटी की उम्र का लिहाज है इसलिए तो नजर उठाकर नहीं देखते। एक इंसान जो बहुत लंबे वक़्त से अकेला तन्हा है, उसके सामने अगर मेरी जैसी हसीन कमसिन औरत ऐसे रहेगी तो भला वो इंसान खुद को कैसे रोके? मेरे लिए ये कपड़े नार्मल और जेन्यूवन हैं. लेकिन उनके हिसाब से तो सलवार सूट में भी मैं आग लगाती होऊँगी। सच में उन्होंने खुद पे बड़ा काबू किया हुआ है?

शाजिया का जवाब आया “तो क्या बुर्का पहनकर रहूं?”

फिर शाजिया खुद ही सोचने लगी- “नहीं। लेकिन मैं अब उनके सामने भी नहीं जाऊँगी और हम जल्द से जल्द ये घर खाली कर देंगे। सही है की मैं कुछ भी पहनू उनके अरमानों में तो हलचल होगी ही। शाहिद एक सप्ताह में मेरे बिना पागल हो रहा था और ये तो सालों से अकेले हैं…

शाजिया एक घंटे तक शंभू के बारे में ही सोचती रही। उसके दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी। वो उसी तरह सोफे पे लेटी हुई थी और उसका ट्राउजर और पैंटी नीचे पैर की एंड़ी के पास थी। शाजिया को शंभू के अपने काम पे चले जाने की आहट हुई। शाजिया उठकर बैठी और अपने कपड़े ठीक की।

फिर वो छत पे आ गई और अपने कपड़े ले आई। पैंटी गीली ही थी और ब्रा भी। शाजिया सोच ली थी की कल से पैंटी ब्रा को छत पे सूखने ही नहीं देगी। शाजिया उसे धोने जा रही थीं, लेकिन वो बाकी के कपड़े रखकर पैंटी को देखने लगी। ब्राउन कलर की पैंटी पे सफेद वीर्य अब तक हल्का-हल्का दिख रहा था।

उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घूम गया। कैसे उसके इतने सामने शंभू का इतना बड़ा मोटा काला लण्ड ढेर सारा वीर्य उसकी पैंटी में गिरा रहा था। वो ब्रा भी उठाकर देखने लगी। उसकी चूत में फिर से हलचल मचने लगी। फिर से उसे एक बार उस वीर्य को सूँघने का मन हुआ और वो पैंटी को नाक के पास ले आई।

उफफ्फ … अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके नथुने से टकराई, जिसे वो अपने सीने में भरती चली गई। उसने अपनी पैंटी पे लगे वीर्य पे जीभ को सटाया तो उसे ऐसा एहसास हुआ की वो शंभू के लण्ड के टोपे को अपनी जीभ से चाट रही है। शाजिया की चूत अब हलचल करने लगी। उसका बदन हिलने लगा।

शाजिया पैंटी ब्रा को सोफे पे रख दी और पहले अपनी ट्राउजर और पैंटी को उतार दी। इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो उसने टाप और ब्रा को भी उतार दिया और पूरी नंगी हो गई। उसका बदन आग में तप रहा था। वो फिर से पैंटी और ब्रा को उठा ली और नंगी चलती हुई सोफे पे जा बैठी।

उसने पैंटी को चाटते हुए कल्पना में शंभू के लण्ड को चाटना स्टार्ट कर दिया। उसने पैंटी को रख दिया और ब्रा को उठा लिया और सूँघने चाटने लगी। वो शंभू के वीर्य लगे पैंटी को अपनी चूत पे रगड़ने लगी और उंगली अंदर-बाहर करने लगी। वो पागलों को तरह अपनी कमर उछालने लगी जैसे वो चुद रही हो।

उसने ब्रा के कप को अपने मुँह पर रख लिया और हाथ के सहारे अपने जिश्म को ऊपर उठाई और कमर उठाकर चुदवाने जैसी उंगली अंदर-बाहर करते हुए कमर ऊपर-नीचे करने लगी। उसकी चूत ने पानी का फव्वारा छोड़ दिया और शाजिया हाँफती हुई सोफे पे पर गई।

पहली बार से ज्यादा हाँफ रही थी शाजिया और पहली बार से ज्यादा मजा आया था उसे। शाजिया हाँफती हुई सोफे पे ही पड़ गई। उसकी आँखें बंद थी और चेहरे पे असीम सुकून था। जिश्म पसीने से भीग गया था। हवा उसके जिश्म को ठंडक पहुँचा रही थी। उसकी आँख लग गई। वो इसी तरह नंगी ही सोफे पे सो गई थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

जब से शाजिया बड़ी हुई थी ये पहली बार हुआ था की वो इस तरह घर में नंगी हुई थी और नंगी सोई थी। यहाँ तक की शादी के बाद भी शाहिद से चुदवाने के बाद भी वो कपड़े पहनकर ही रूम से बाहर निकलती थी और बाथरूम या किचेन जाती थी। शाहिद ने कहा भी था की यहाँ कौन है जो कपड़े पहन लेती हो, नंगी ही हो आओ बाथरूम से या नंगी ही सो जाओ।

लेकिन शर्म की वजह से शाजिया ऐसा कर नहीं पाती थी। चुदाई के बाद वो तुरंत ही कपड़े पहन लेती थी। लेकिन आज वो अपने मन से घर में नंगी हो गई थी और एक के बाद एक और बार चूत में उंगली डालकर पानी निकाली थी। लगभग 5:00 बजे शाजिया की नींद खुली तो उसे खुद पे शर्म भी आई और आश्चर्य भी हुआ की ये क्या हो गया है आज उसे? वो बाथरूम जाकर नहा ली और फिर फ्रेश होकर शाहिद के आने का इंतजार करने लगी।

आज रात को खाना खाते वक़्त शाजिया शाहिद से शंभू चाचा के बारे में पूछी की- “शंभू चाचा अकेले क्यों रहते हैं, इनका परिवार कहाँ गई?”

शाहिद को भी ज्यादा कुछ पता था नहीं तो जो मोटा मोटी पता था उसने बताया की “काफी साल पहले एक आक्सिडेंट में इनकी बीवी की मौत हो गई थी और इसने दूसरी शादी नहीं की और बच्चे बाहर रहते हैं..”

शाजिया को अपने स्वाभाव के अनुसार शंभू पे उसे दया आने लगी की एक इंसान इतने साल अकेले कैसे गुजार रहा है और ऐसे में अगर कोई मेरी जैसी लड़की उसके सामने रहेगी तो वो भला खुद को कैसे रोक पाएगा? पुरुष के जिश्म की जरूरतें होती हैं और शंभू चाचा ने इतने सालों पे अगर खुद पे काबू किया तो ये तो बहुत बड़ी बात है। ये तो सरासर मेरी गलती है की मैं ही इनकी परेशानी का सबब हूँ”.

शाजिया फिर शाहिद से पूछी- “इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की। इन्होंने पहली पत्नी के मर जाने के बाद भी दूसरी शादी नहीं की…

शाहिद हँसते हुए बोला- “मुझे क्या पता जान की इन्होंने दूसरी शादी क्यों नहीं की? लेकिन नहीं की और अकेले ही अपनी जिंदगी गुज़ार रहे हैं…”

शाजिया की नजरों में अब शंभू का कद और ऊंचा हो गया। अगले दिन शाजिया एक बजे के पहले काफी उधेड़बुन में थी। अपने दिमाग में चल रही जंग की वजह से वो अपनी पैंटी ब्रा छत पे सूखने तो दे दी थी लेकिन अब क्या करे वो डिसाइड नहीं कर पा रही थी। कभी वो सोच रही थी की पैंटी ब्रा वापस नीचे ले आती.

फिर कभी सोचती की मेरी पैंटी ब्रा को हाथ में लेने और उसपे अपना वीर्य गिराने से अगर शंभू चाचा को संतुष्टि मिलती है तो मैं इसमें खलल क्यों डालूं? कहीं ऐसा ना हो की ये चीज भी छिन जाने से वो अपसेट हो जाएं। अकेले इंसान के मन में बहुत सारी बातें चलती रहती हैं। इसीलिए जो वो कर रहे हैं करने देती हूँ। मैं सोच लूँगी की मुझे पता ही नहीं है, और मैं उनके सामने जाऊँगी ही नहीं।

शाजिया यही सब काफी देर से सोच रही थी वो जो कर रहे हैं उन्हें करने देने में ही उनकी भलाई है। और उन्हें थोड़े ही पता है की मुझे पता है। आह्ह… कितनी अच्छी खुश्बू आती है लेकिन उससे पता नहीं कल क्या हो गया था मुझे। मैं अब ऊपर जाऊँगी ही नहीं और देर से अपने कपड़े उठाकर लाऊँगी तब तक वीर्य सूख गया होगा।

फिर वो सोचने लगी की उन्हें तो पता ही नहीं है की मुझे उनकी हरकत के बारे में पता है। तो उन्हें अपना मजा लेने देती हूँ और मैं अपना मजा लेती हूँ। उन्हें वीर्य गिराकर सुकून मिलता है और मुझे सूँघकर चाटकर सोचते-सोचते एक बजने वाले थे। शाजिया अचानक उठी और जाकर चाट में स्टोररूम में छिप गई। उसकी सांसें तेज चल रही थी और दिल जोरों से धड़क रहा था।

तय वक़्त पे शंभू घर आया और रूम का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया। शाजिया की धड़कन और तेज हो गई। उसकी सांस लेने की आवाज भी लग रहा था जैसे बाहर जा रही हो। शंभू लुंगी और गंजी पहनकर रूम से बाहर आ गया। फिर से उसने पैंटी ब्रा को उठा लिया और चूमता हुआ स्टोररूम के दरवाजा के सामने खड़ा हो गया।

उसने लुंगी को साइड करके लण्ड को बाहर निकाला और आगे-पीछे करने लगा। आज शाजिया को और अच्छे से लण्ड के दर्शन हो रहे थे। शंभू के लण्ड और शाजिया के बीच में बस एक डेढ़ मीटर का अंतर होगा। शाजिया के हिसाब से शंभू का लण्ड बहुत ही ज्यादा लंबा, काला, बहुत ही मोटा था और सामने से पूरा सुपाड़ा चमकता हुआ उसे दिख रहा था।

शंभू फुल स्पीड में मूठ मार रहा था और शाजिया वीर्य के बाहर आने का इंतजार कर रही थी। उसे डर भी लग रहा था और मजा भी आ रहा था। शंभू के लण्ड ने पिचकारी की तरह तेज धार के साथ सफेद गाढ़ा वीर्य छोड़ दिया, जिसे शंभू ने ब्रा के दोनों कप में भर दिया और फिर तुरंत ही पैंटी को लण्ड पे दबाकर उसे भिगोने लगा।

जब उसका लण्ड शांत हो गया तो उसने हमेशा की तरह शाजिया की पैंटी ब्रा को उसकी जगह में टांग दिया और रूम बंद करता हुआ अंदर चला गया। शाजिया के लिए अब एक लम्हा भी गुजारना मुश्किल हो रहा था। वो सोची की शंभू चाचा तो अंदर चले गये और अब 3:00 बजे बाहर आएंगे और दुकान जाएंगे।

मैं कपड़े अभी ले जाऊँ या आधे घंटे बाद क्या फर्क पड़ता है? पसीने से तरबतर हो चुकी थी शाजिया। किसी तरह उसने 5 मिनट गुजारे और फिर स्टोररूम से बाहर आकर ऐसे छत पे आई जैसे नार्मली नीचे से अपने कपड़े ले जाने के लिए आई हो। शाजिया चुपचाप धीरे-धीरे करके अपने कपड़े उठाई और नीचे भागी।

शंभू रूम के अंदर से उसे कपड़े उठाते और नीचे ले जाते हुए देख रहा था और उसके चेहरे पे मुश्कान फैल गई। ऐसी शातिर मुश्कान जो शिकारी को तब होती है जब उसका शिकार चारा खाने लगता है। शाजिया दौड़ती हुई नीचे आई और बाकी सारे कपड़े को टेबल पे फेंकी और पैंटी ब्रा को देखने लगी।

पैंटी अलग- अलग जगह से भीगी हुई थी, लेकिन ब्रा के दोनों कप वीर्य से चिप चिप कर रहे थे। शाजिया वीर्य को सूँघने लगी और तुरंत ही नंगी हो गई। उसने वीर्य से भरे ब्रा को अपने चूची से चिपका लिया। शाजिया सोफे पे सीधा लेट गई और पैंटी को सूँघने चाटने लगी और फिर उसी पैंटी को पहन ली।

फिर उसने ब्रा को चूचियों से अलग किया। शाजिया की गोरी-गोरी गोल मुलायम चूचियां वीर्य लगने की वजह से चमक रही थीं। शाजिया ब्रा को अपने चेहरे पे रख ली और पैंटी को नीचे करके चूत में उंगली करने लगी। शाजिया पागलों की तरह कर रही थी।

वो उठकर बैठ गई और पैंटी को उतार दी और ब्रा को पहन ली। फिर वो ब्रा के ऊपर से चूची मसलती हुई चूत में उंगली करने लगी। चूत ने पानी छोड़ दिया और शाजिया शांत हुई। दौड़कर नीचे आने और पैंटी ब्रा पे लगे वीर्य को सूँघने चाटने की हड़बड़ी के चक्कर में शाजिया अपने घर का दरवाजा बंद करना भूल गई थी।

शाजिया के नीचे आने के दो मिनट बाद शंभू अपने कपड़े पहनकर चुपचाप नीचे आ गया और छुप कर शाजिया को देखने लगा। वैसे तो उसे शाजिया को देखने के लिए मेहनत करना पड़ता लेकिन दरवाजा खुला होने की वजह से वो पर्दे की आड़ में सब कुछ लाइव देख रहा था।

शाजिया के ढेर होने के बाद शंभू मुश्कुराता हुआ अपने रूम में चला गया। शिकार दाना चुग चुका था और अब बस शिकार करने की देरी थी। अपने रूम में आकर शंभू नंगा हो गया और बेड पे लेटकर शाजिया के हसीन जिश्म के सपने देखने लगा की कितना मजा आएगा इस कमसिन काली को चोदने में?

कितना मजा आएगा जब ये अपनी टाँगे फैलाकर मेरा मूसल लण्ड अपनी टाइट चूत में लेगी? आहह.. कितना मजा आएगा जब मैं कुतिया बनाकर इसकी गाण्ड मारूँगा? बहुत दिनों तक सस्ती रंडियों को चोदकर लण्ड को शांत किया है, अब वक़्त आ गया है की मेरे इस लण्ड को मस्त माल मिले। मुझे शाजिया को अपनी रंडी बनाना है और इसे दिन रात चोदते रहना है।

रंडी को क्या लगता है मुझे पता नहीं की वो स्टोररूम में छिपकर मुझे देख रही थी। इसलिए तो पूरा लण्ड उसके सामने कर दिया था मैंने मजा तो तब आएगा मेरी रंडी शाजिया, जब मेरा लण्ड तेरे हाथ में होगा और तू उसे चूसकर उसका वीर्य सीधा अपने मुँह में लेगी।

थोड़ी देर बाद शाजिया उठी तो फिर से उसे अपने आप पे गुस्सा आ रहा था। लेकिन आज का गुस्सा कल से कम था। इन 24 घंटों में उसके दिमाग में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी और शाजिया अपने फेवर में अपने मन को समझा चुकी थी। शाजिया नहाने जाने लगी तो उसकी नजर दरवाजे पे पड़ी जो खुला था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

उसका मुँह खुला रह गया, क्योंकी वो अब तक नंगी ही थी। हे भगवान् मैं पागल हो गई हूँ। ऐसे दरवाजा खोलकर मैं नंगी घूम रही हूँ और क्या-क्या कर रही हूँ। कहीं किसी ने देखा तो नहीं? फिर वो सोचने लगी की अभी भला कौन आएगा क्योंकी मुख्य दरवाजा तो बंद ही था और शंभू चाचा तो 3:00 बजे नीचे उतरते हैं। वो रिलैक्स हो गई और दरवाजा बंद करके नहाने चली गई।

शाहिद के आने के बाद आज फिर शाजिया और शाहिद का टापिक शंभू ही था। बातें करते-करते शाजिया शंभू के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाह रही थी। इसलिये शाहिद से पूछी “शंभू चाचा इतने साल अकेले रहे कैसे? क्या इन्हें औरत की कमी महसूस नहीं होती होगी, तुम तो एक हफ्ते में पागल हुए जा रहे थे…”

शाहिद हँस दिया और बोला- “जिसके पास तुम जैसी हसीन बीवी हो वो एक हफ्ते क्या एक दिन में ही पागल हो जाएगा। मैं बहुत खुशनशीब हूँ की तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की मेरी बीवी है…”

अब हँसने की बारी शाजिया की थी। वो हँसती हुई बोली- “इतनी भी खूबसूरत तो नहीं हूँ..

शाहिद ने उसे पीछे से पकड़ लिया और बोला- “तुम माल हो, मस्त माल… गोरा चिकना बदन तुम्हारी चिकनी पीठ, फिसलती हुई कमर और गौरी मुलायम छाती को देखकर मेरा लण्ड कई बार टाइट हो जाता है। मैं तुमसे दूर होकर तो पागल हो ही जाऊँगा..”

ऐसी तारीफ सुनकर शाजिया गई। रात को शाजिया शाहिद को बोली- “कल हम शंभू चाचा को अपने यहाँ खाना खिलाएंगे, रात में। तुम कल उन्हें बोल देना। जो इंसान इतने सालों से अकेला है, खुद से सब कुछ कर रहा है, उसे हम कभी कभार लंच या डिनर तो खिला ही सकते हैं। वैसे भी वो हमारा मकान मालिक है और जब से हम आए हैं, तब से एक बार भी हमने उन्हें अपने घर नहीं बुलाया है…

अपने पड़ोसियों, दोस्तों और रिश्तेदारों से अच्छे रिश्ते बनाना, मिलना जुलना, खाना खिलाना शाजिया और उसकी परिवार की आदत में शुमार था। लेकिन जब से शाजिया यहाँ आई थी तो वो अपने आप में और अपने मेहमानों में ही बिजी थी। कभी वो शाहिद के साथ घूमने चली गई थी तो कभी उसके पेरेंट्स या शाहिद के पेरेंट्स यहाँ आ गये थे। शंभू का हिंदू होना भी एक वजह था।

शाहिद बोला- “क्या बात है, आजकल शंभू चाचा का ज्यादा ही ख्याल रखा जा रहा है?” उसने शरारती मुश्कान के साथ ये कहा था।

लेकिन शाजिया डर गई और अंदर से डर भी गई थी। वो बोली- “क्या तुम भी कुछ भी बोल देते हो। कहाँ वो 50-55 साल का आदमी और कहाँ मैं?”

शाजिया सोते समय बेड पे आने से पहले अपनी नाइटी को ढीला कर ली और शाहिद से सटकर लेट गई। शाहिद के लण्ड में थोड़ी हलचल मच गई। दोनों रोज सेक्स नहीं करते थे। कभी कभार तो एक सप्ताह 15 दिन भी हो जाता था। लेकिन आज शाजिया मूड में थी। शाहिद उसे किस करते हुए उसका बदन सहलाने लगा।

शाजिया ने खुद को नंगी होने दिया और शाहिद के नंगे होने का इंतजार करने लगी। वो अच्छे से करीब से शाहिद का लण्ड देखने लगी। उसे लगा की ये तो किसी बच्चे का लण्ड है। शंभू का लण्ड उसकी नजरों के सामने घूम गया। शाहिद का लण्ड शंभू के लण्ड का आधा भी नहीं होगा और उसके सामने बिल्कुल पतला था।

शाहिद का लण्ड स्किन से ढका हुआ था। वो हाथ में लेकर सहलाने लगी और स्किन को पीछे खींचकर सुपाड़े को बाहर करने लगी तो शाहिद को दर्द होने लगा और उसने मना कर दिया। शाजिया उठकर बैठ गई और लण्ड को दोनों हाथों में लेकर सहलाने लगी। शाजिया के इस रूप को देखकर शाहिद सर्प्राइज़्ड था।

अब तक शाजिया सेक्स में शाहिद का बस साथ देती थी, वो भी कभी कभार और आज तो खुद लीड कर रही थी। दो दिन पहले भी शाजिया ने पहल की थी, लेकिन आज तो उसने हद ही कर दी थी। शाहिद शाजिया के ऊपर आ गया और लण्ड को चूत पे रगड़ते हुए अंदर डालने लगा। शाजिया शाहिद के लण्ड को चूमना चाहती थी, उसके वीर्य की खुश्बू लेना चाहती थी, लेकिन शाहिद तब तक उसके ऊपर आ चुका था।

शाहिद ने लण्ड अंदर डाल दिया और 8-10 धक्के लगाते ही उसके लण्ड ने पानी छोड़ दिया। शाजिया को तो समझ में ही नहीं आया की हुआ क्या है? वो तो अभी तक शुरू भी नहीं हुई थी की शाहिद का खेल खतम हो गया। शाहिद बगल में हो गया और करवट बदलकर सो गया।

शाजिया अपनी प्यासी चूत लिए रात भर करवट इधर से उधर बदलती रहीं। दिन में शाजिया फिर से दोपहर का इंतजार कर रही थी। अब उसके मन में कोई वंद नहीं चल रहा था। उसने खुद को समझा लिया था की शंभू कई सालों से अकेला है और मैंने उसकी सोई ख्वाहिशों को जगा दिया है, जिसे वो छिपकर मेरी पैंटी ब्रा पे उतारता है।

मुझे उससे उसकी खुशी नहीं छीननी है और मैं उसके वीर्य को सूँघकर चाटकर खुश हो रही हूँ। उसे नहीं पता की मुझे पता है तो दोनों अपना-अपना मजा ले रहे हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वो अपने वक़्त पे एक बजे से कुछ पहले स्टोररूम में जाकर छिप गई। शंभू आया और आते वक़्त ही शाजिया की पैंटी ब्रा को देखता गया, जिसे शाजिया ने आज और अच्छे से फैलाया हुआ था।

शाजिया चाहती थी की शंभू को जो सुख मिल रहा है वो अच्छे से मिले। उसने ट्रांसपेरेंट पैंटी ब्रा को छत पे टंगा था। रोज की तरह शंभू रूम से लुंगी गंजी में आया और शाजिया की पैंटी ब्रा को उठाकर स्टोररूम के दरवाजा के सामने खड़ा हो गया। आज शाजिया कल की तरह तेज सांस नहीं ले रही थी और न ही आज उसकी धड़कन तेज थी। शंभू ने आज अपनी लुंगी को नीचे गिरा दिया और नीचे से पूरा नंगा हो गया और मूठ मारने लगा।

शाजिया का मुँह खुला का खुला रह गया। शंभू के लण्ड को इतने साफ से देखकर उसकी धड़कन बढ़ गई। 10 मिनट तक शंभू पैंटी और ब्रा को चूमता चाटता रहा और लण्ड को आगे-पीछे करता रहा। उसने अपने लण्ड से ऐसे वीर्य गिराया की शाजिया को साफ-साफ वीर्य निकलता दिख रहा था। शाजिया की पूरी पैंटी गीली कर दी शंभू ने। फिर वो अपने लुंगी को पहनकर पैंटी ब्रा को टांग दिया और रूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।

शंभू के लिए भी इंतजार करना अब मुश्किल हो रहा था। वो जानता था की शाजिया उसके सामने छिपकर उसके लण्ड को देख रही है, और अगर वो स्टोररूम के दरवाजे को खोल दे तो शायद शाजिया खुद को चुदवाने से रोक नहीं पाए। लेकिन वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। वो शाजिया को पर्मानेंट रंडी बनाना चाहता था अपनी।

अपनी रखैल अपनी पालतू कुतिया बनाना चाहता था जो उसके इशारे पे नाचे। बड़े शिकार को फँसाने के लिए उसे अच्छे से चारा डालकर अच्छे से इंतजार करना होगा और वो कोई गलती नहीं करना चाहता था। वो दरवाजा के पीछे से देखने लगा। आज शंभू के अंदर गये हुए दो मिनट भी नहीं हुए थे की शाजिया स्टोररूम से बाहर आई और अपने कपड़े समेट कर नीचे चली गई।

उसने दरवाजा को अच्छे से लाक कर लिया और बाकी कपड़ों को टेबल पे फेंक कर पैंटी को अपने चेहरा पे रख ली और नंगी हो गई। पैंटी में लगा वीर्य उसके चेहरा को भिगोने लगा और उसकी खुश्बू उसके सीने में भरने लगी। शाजिया नंगी होकर रोज की तरह चूत में उंगली करने लगी और वीर्य को चाटने लगी। शंभू नीचे आया था लेकिन दरवाजा बंद होने की वजह से वो वापस चला गया था। उसने सोचा की देखने के लिए इतना मेहनत क्या करना।

चूत से पानी निकालने के बाद शाजिया नंगी ही सो गई और शाम तक नंगी ही अपना काम करती रही। शंभू के वीर्य की खुश्बू ने उसके अंदर की काम ज्वाला को प्रज्वल्लित कर दिया था। शाहिद के आने से पहले वो नहाकर फ्रेश हो गई और शाम के दावत की तैयारी करने लगी।

शाम में शाहिद आया तो पता चला की उसने शंभू को अब तक इन्वाइट ही नहीं किया है। शाजिया उससे झगड़ने लगी की मैं इतनी तैयारी कर रही हूँ और तुमने गेस्ट को इन्वाइट ही नहीं किया। शाहिद ने तुरंत ही शंभू को काल किया। शाहिद सोचने पे मजबूर हो गया की शाजिया आजकल शंभू में कुछ ज्यादा ही इंटेरेस्ट ले रही है।

कहीं सच में दोनों के बीच कुछ है तो नहीं? उसके दिमाग में बहुत कुछ चलने लगा और उसके लण्ड में हलचल होने लगी की उसकी 23 साल की जवान और बेहद हसीन बीवी एक 50-55 साल के गैर मर्द के चक्कर में है। शंभू के पास शाहिद का फोन आया की आपका आज रात का खाना हमारे घर पे ही होगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

शंभू ने दावत कबूल किया और मुश्कुरा उठा। अब वो दिन दूर नहीं था जब शाजिया जैसी मस्त हसीन औरत उसके लण्ड के नीचे होने वाली थी। शंभू के मन में आगे का पूरा प्लान बन रहा था। उसका शिकार अब उसके पंजे से ज्यादा दूर नहीं था। शाजिया ने शंभू पे दया दिखाते हुए ये दावत रखी थी की वो अकेले रहते हैं इतने सालों से और खाना भी खुद बनाते हैं, तो हम हफ्ते में एक बार तो उन्हें अपने यहाँ खिला ही सकते हैं।

शाजिया की सोच अब ये बन गई थी की उनके मन में मेरे लिए अरमान हैं, तो मैं उन्हें पता नहीं लगने दूँगी की मुझे पता है और उनकी हेल्प करूँगी। उन्हें मुझे देखना पसंद है तो वो घर आएंगे तो अच्छे से देख सकेंगे, खुलकर बातें कर सकेंगे। इस तरह उन्हें शायद आराम मिले।

शाजिया को क्या पता था की जो बीमारी शंभू को है ये उसका इलाज नहीं है, बल्कि उस मर्ज़ को और आगे बढ़ाने का उपाय है। शायद पता भी हो लेकिन उसने अपने मन को यही समझा लिया था की वो इस तरह शंभू की मदद कर रही है। शाहिद भी राजी था की सही बात है, कभी कभार तो हमें शंभू जी को लंच या डिनर तो कराना ही चाहिए।

शाहिद भी खाना बनाने में अपनी बीवी की मदद कर रहा था। शाजिया बहुत अच्छी साड़ी पहनी थी और बड़े प्यार से सारा खाना बनाया था। उसकी ये साड़ी भी डिजाइनर ही थी जिसमें क्लीवेज और पीठ दिख रही थी। शाजिया लो-वेस्ट साड़ी ही पहनी थी। साड़ी का आँचल ट्रांसपेरेंट था जिससे शाजिया की नाभि और क्लीवेज साफ दिख रही थी। हालांकी ये कोई नई बात नहीं थी। शाजिया हमेशा ऐसे ही कपड़े पहनती थी।

फिर भी शाहिद ने मजाक में शाजिया से कहा- “आज तो शंभू जी पे तुम बिजलियां गिराने वाली हो…

शाजिया भी मुश्कुरा दी। उसका इरादा तो यही था। शंभू अपने वक़्त पे घर आ गया और फ्रेश होकर शाहिद के घर आ गया। शंभू ने सफेद कुर्ता पाजामा पहना था। दरवाजा पे नौ करते ही शाजिया दौड़कर दरवाजा खोली। शाहिद टीवी देख रहा था और जितनी देर में वो उठता तब तक शाजिया दरवाजा खोल चुकी थी।

शंभू के ऊपर दरवाजा खुलते ही जैसे बिजली गिर पड़ी। शाजिया को देखकर उसके जिश्म में सिहरन हो गई। शंभू ने शाजिया को जब भी देखा था तो दूर से देखा था। इतने करीब से ये पहला मौका था उस हुश्न का दीदार करने का। शाजिया भी बिजली गिराने को तैयार ही थी। ट्रांसपेरेंट साड़ी के अंदर से झांकता गोरा चिकना कमसिन बदन, माँग में सिंदूर, माथे पे लाल बिंदी, आँखों में काजल, होठों पे मरुन लिपस्टिक.

गले में एक चैन क्लीवेज तक और मंगलसूत्र ब्लाउज़ के ऊपर हुए ब्लाउज़ के ऊपर से झांकती हुई चूचियां, गोरा चिकना पेट नाभि के नीचे तक, दोनों हाथों में पूरी चूड़ियां और पैरों में पायल शाजिया साक्षात अप्सरा लग रही थी। शंभू उसे देखता ही रह गया। उसे इस तरह की उम्मीद नहीं थी। उसका मन हुआ की अभी ही शाजिया को बाहों में भर ले और उसे चूमना स्टार्ट कर दे।

शाजिया जब मुश्कुराती हुई खनकती आवाज में- “आइए ना चाचाजी..” बोलती हुई दरवाजे के आगे से हटी तब शंभू झटके से होश में आया।

शंभू “आँन्न्.. हाँन्…” बोलता हुआ अंदर आया।

शाजिया अंदर जाती हुई शाहिद को आवाज लगाई- “उठिए ना, देखिए शंभू जी आए हैं, आप कब से टीवी ही देख रहे हैं…”

शंभू पीछे से शाजिया की चमकती पीठ और कमर में हो रही थिरकन का मजा ले रहा था।

शाहिद तब तक शंभू का स्वागत करने के लिए उठ चुका था और शंभू को बोला- “आइए अंकल, बैठिए, कैसे हैं?”

शंभू अब सम्हल चुका था और “सब बढ़िया आप सुनाइए ?” बोलता हुआ सोफे पे बैठ गया।

शाहिद और शंभू बातें करने लगे। तब तक शाजिया किचेन से एक ट्रे में पानी और कोल्ड ड्रिंक ग्लास में ले आई और शंभू को बड़े अदब से सर्व की। शाजिया के झुकते ही उसकी चूचियां ब्लाउज़ से बाहर निकल जाने को आतुर हो जाती थीं। शंभू और शाहिद ने कोल्ड ड्रिंक और पानी ले लिया तो फिर शाजिया किचेन की तरफ वापस चल दी।

शंभू का मन हुआ की कोल्ड ड्रिंक लेते वक़्त शाजिया के ब्लाउज़ में झाँके या जब वो वापस जा रही थी तो उसकी गाण्ड की हलचल को देखे। लेकिन ऐसा करना उसकी चाल का हिस्सा नहीं था। उसने बड़ी मुश्किल से खुद पे काबू किया और ऐसे रिएक्ट किया जैसे कुछ हो ही ना रहा हो।

शाजिया भी एक ग्लास में कोल्ड ड्रिंक लेकर बाहर आ गई और सामने बैठकर उस बातचीत का हिस्सा बनने की कोशिश करने लगी। उसका मकसद बस यहीं था की वो शंभू की नजरों के सामने रहे, ताकी शंभू शाजिया को अच्छे से देख पाए। लेकिन शंभू ना तो शाजिया की तरफ देख रहा था और ना ही उससे बात कर रहा था।

थोड़ी देर बाद शाजिया उठी और बड़े प्यार से उसे खाना सर्व की शंभू और शाहिद साथ में खाना खाए। शाजिया जानबूझ कर शंभू के सामने ज्यादा और देर तक झुकती थी ताकी शंभू उसके जिश्म को देख सके। शंभू बिल्कुल शरीफ बंदे की तरह बैठा रहा और शाजिया पे एक नजर डालने के बाद उसने शाजिया की तरफ देखा भी नहीं। लेकिन शाहिद का ध्यान बस शाजिया पे ही था। शाजिया एक तो वैसे ही इतनी खूबसूरत थी और उसपे ये साड़ी और फुल मेकप में वो कयामत ढा रही थी।

शंभू के लिए खुद को रोके रखना बहुत ही मुश्किल था लेकिन अगर शिकार को अच्छे से दबोचना है तो सही वक़्त का इंतजार करना चाहिए ये सोचते हुए वो खुद पे काबू किए रहा। शाहिद और शंभू में कई तरह की बातें होती रही और धीरे-धीरे बात शंभू के जिंदगी में आ गई और शंभू ने बताया की अपनी पत्नी के इंतकाल के बाद उसने दुबारा विवाह नहीं किया।

शाहिद ने पूछ लिया- “इतना लंबा वक़्त हो गया तो कभी शारीरिक कमी महसूस नहीं हुई..”

शंभू बस हँस पड़ा। उसने बताया की दो-तीन औरतों के साथ विवाह की बात चली लेकिन हर बार बात बिगड़ जाती थी। उसकी सारी कहानियों का सार यह था की उसने कभी किसी के साथ चीटिंग या बेईमानी नहीं की और हर औरत के साथ वो साफ और स्पष्ट तरीके से पेश आया था।

लेकिन उन औरतों ने ही शंभू को चीट किया था। शाहिद का ककोल्ड मन जागने लगा और उसे लगा की उसकी बीवी इस तरह सजकर एक हिंदू मर्द के सामने खुद को पेश कर रही है। शाहिद का लण्ड अंदर टाइट हो चला। शंभू थोड़ी देर बाद अपने कमरे में चला गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

शाजिया खाने बैठी तो शाहिद ने उससे कहा- “आज तो तुम शंभू जी पे कयामत ढा रही थी..”

शाजिया हँस पड़ी और फिर मजाक में बोल दी- “लेकिन फिर भी शंभू जी ने तो देखा भी नहीं। वो कितने शरीफ और नेक इंसान हैं…”

शाहिद को शाजिया की ये हँसी अजीब लगी और उसने भी हँसते हुए मजाक में पूछा- “क्या तुम शंभू जी के लिए ही इतना सजी थी?”

शाजिया मुश्कुरा दी और हँसकर बोली- “हाँ… तुम्हारे लिए इतना क्यों सजूं? तुम तो ऐसे ही मुझे इतना प्यार करते हो…”

बात मजाक में कही गई थी लेकिन शाहिद की आँखों के सामने ये दृश्य चलने लगा की कैसे शाजिया खाना खिलाते वक़्त झुक रही थी बार-बार वो अकेला बैठकर टीवी देख रहा था लेकिन उसकी आँखों के सामने ये दृश्य चल रहा था की शंभू के सामने झुकने पे शाजिया का आँचल उड़ गया और वो हड़बड़ा कर शंभू पे गिर पड़ी थी, और शंभू उसकी चूचियों को मसलने और चूसने लगा।

अपनी हसीन बीवी का उस बूढ़े मर्द के साथ ये बात सोचकर शाहिद का लण्ड टाइट हो रहा था। वो खाना खाती हुई शाजिया को गौर से देखने लगा और सोचने करने लगा की कैसे शंभू उसके चिकने जिश्म को मसल रहा है, और कैसे शाजिया उस बूढ़े आदमी के साथ मस्ती कर रही है।

सोने जाते वक़्त शाजिया अपने सारे कपड़े उतार दी और नाइट सूट पहनकर सोने आ गई। उसे गुस्सा आ रहा था की उसकी इतनी मेहनत बेकार गई। कितने जतन से वो सजी थी, ताकी शंभू उसे देखकर अच्छा महसूस कर पाए लेकिन उसने देखा तक नहीं उसे लगा था की शाजिया को इस तरह अच्छे से देखकर उसे आराम मिलेगा।

लेकिन उसे क्या पता था की यहाँ तो शंभू किसी तरह खुद पे काबू किए रहा, लेकिन रूम में जाते ही वो नंगा हुआ और शाजिया का नाम जप्ते हुए लण्ड से वीर्य निकालकर बर्बाद कर दिया। शाहिद का लण्ड टाइट था। उसने चोदने के लिए शाजिया के जिश्म पे हाथ लगाया।

शाजिया उसे मना कर दी और सोचने लगी- “मुझे नहीं चुदवाना इस बच्चे टाइप के लण्ड से दो मिनट होगा नहीं की खुद तो सो जायेगा और मैं मरती रहूंगी। एक वो शंभू जी हैं जिनके पास इतना बड़ा मोटा मूसल टाइप का लण्ड है और जिसका वीर्य वो मेरे पैंटी ब्रा पे निकलता है, लेकिन सामने मैं हूँ तो देखता भी नहीं। दोनों का काम बस मुझे तड़पाना है। वो अकेले में तड़पेगा लेकिन ये चैन की नींद सोएगा। इसलिए तुम भी तड़पो पतिदेव..” और शाजिया सोचती हुई सो गई।

शंभू रूम में घुसते ही नंगा हो गया और लण्ड आगे-पीछे करने लगा। उसका लण्ड फुल टाइट था- “आह्ह… मेरी रांड़, क्या माल लग रही थी तू… जी तो चाह रहा था की उसी वक़्त पटक कर तुझे चोद दूं। लेकिन क्या करूँ जान, तेरे इस हसीन जिश्म को ऐसे नहीं पाना चाहता। जो तू झुक कर चूची दिखा रही थी उसे जरूर मसलूंगा, और चुसूंगा, बस तू थोड़ी और पक जा मेरी रंडी बनने के लिए। फिर तेरे पूरे जिश्म पे मेरा अधिकार होगा….”

अगले दिन दोपहर होते ही शाजिया शंभू के लण्ड का दर्शन करने अपनी जगह पहुँच गई। अब शाजिया को बिल्कुल डर नहीं लगता था और वो ऐसे स्टोररूम में जा रही थी जैसे ये कोई नार्मल सिंपल काम हो। उसने अपने मन में सोच लिया था की अगर शंभू ने उसे देख भी लिया तो भी कोई परवाह नहीं। क्योंकी शंभू गलत काम कर रहा है, मैं नहीं। मैं तो ये पता लगाने छत पे छुपकर बैठी थी की आखिर वो है कौन जो रोज मेरी पैंटी ब्रा को गीली करता है?

शाजिया अपनी जगह पे बैठ गई। रोज की ही तरह शंभू आया और फिर कपड़े चेंज करके अपने काम में लग गया। आज उसका लण्ड जरा ज्यादा टाइट था, शाजिया का कल का रूप देखकर उसने पैंटी ब्रा को भीगा दिया और अपनी जगह पर टांग कर अपने रूम में चला गया और दरवाजा बंद कर लिया।

दो ही मिनट बाद शाजिया स्टोररूम से बाहर निकली और आज सिर्फ पैंटी ब्रा लेकर नीचे चली गई। बाकी कपड़े उसने छत पे ही छोड़ दिए। सीढ़ियों पे ही शाजिया कपड़े में लगे वीर्य को सूँघने और चाटने लगी। उसे शंभू पे बहुत गुस्सा आ रहा था? ये क्या पागलपन है यार सामने होती हूँ तो देखता भी नहीं, बात करना तो दूर की चीज है और रोज पैंटी ब्रा पे वीर्य गिराता है।

इतनी ही आग है मन में मुझे लेकर तो मेरे से बात करो, मुझे देखो तो शायद आराम मिले, शायद अच्छा लगे। और अगर शरीफ ही बने रहना है तो ये भी मत करो। मन में तो पता नहीं कितने अरमान पाल रखा होगा मेरे बारे में, कितनी तरह से चोद चुका होगा, लेकिन बाहर से इतना शरीफ बनता है की कहना ही नहीं?

शाजिया भी रोज की तरह नीचे आकर नंगी हुई और वीर्य चाटते हुए शंभू के बारे में सोचती रही और चूत से पानी निकालने के बाद नंगी ही रहीं। 3:00 बजे शाजिया के घर का दरवाजा नाक हुआ। शाजिया नंगी ही लेटी टीवी देख रही थी। वो हड़बड़ा गई और जल्दी से कपड़े ढूँढ़ने लगी। वो पैंटी ब्रा पहनती तो लेट होता। इसलिए वो हड़बड़ी में बस नाइटगाउन पहनते हुए पूछी- “कौन है?”

उधर से शंभू की आवाज आई- मैं हूँ, शंभू…”

शाजिया का दिल जोरों से धड़क गया की ये क्यों आए हैं? कहीं मुझे देख तो नहीं लिया? शायद सिर्फ पैंटी ब्रा लाई उठाकर तो इन्हें पता लग गया होगा की मुझे पता है। पता नहीं क्या बोलेगा? शाजिया हड़बड़ाती हुई दरवाजा खोली- “आइए ना शंभू जी, अंदर आइए…”

शंभू बोला- “नहीं, बस जा रहा हूँ। रात में आने में थोड़ी देर हो जाएगी। बस यही बोलने आया था। तो दरवाजा बंद कर लीजिएगा और मैं काल करूँगा तो दरवाजा खोल दीजिएगा…”

शाजिया बोली- “ठीक है, कोई बात नहीं खोल दूँगी। आइए ना चाय तो पीकर जाइए…

शंभू – “ना ना चलता हूँ अभी” बोलता हुआ चला गया।

शाजिया की जान में जान आई शंभू के जाने के बाद। लेकिन उसके मन उदास हो गया की अंदर आकर बैठकर कुछ बात तो करते कम से कम बेकार मैं कपड़े पहनी। नंगी ही दरवाजा खोल देती, नहीं तो कम से कम कपड़े तो ढीले रखती। पूरा ढक ली। बेचारे एक तो कभी आते नहीं और आए भी तो मुझे कुछ तो दिखा ही देना चाहिए था। मैं इतनी हड़बड़ा गई थी की दिमाग ही काम नहीं किया? और शाजिया शंभू के ख्यालों में फिर से खो गई।

बाहर जाते हुए शंभू का लण्ड टाइट हो चुका था। शाजिया अपने हिसाब से शंभू को कुछ नहीं दिखा पाई थी, लेकिन शंभू की हरामी नजर एक झटके में ये ताड़ गया था की रंडी ने अंदर कुछ नहीं पहना था। चूचियों की गोलाई में सटी नाइटगाउन को देखकर ही वो समझ गया की अंदर ब्रा नहीं था और इसलिए शंभू का लण्ड और टाइट हो गया था। रोड पे आने से पहले उसने अपने लण्ड को पायजामा में अड्जस्ट किया और दुकान की तरफ चल पड़ा।

शंभू सोचने लगा- “रंडी पक्का अंदर नंगी होगी। चुदवाने के लिए मरी तो जा रही है लेकिन हाए रे संस्कारी नारी, कुछ बोल नहीं पा रही। बाकी कपड़े छोड़कर सिर्फ पैंटी ब्रा इसलिए ले गई ताकी मैं जान सकूँ की वो जानती है और मेरी हिम्मत बढ़ जाए। लेकिन मेरी रांड, इतनी आसानी से तुझे थोड़ी मेरा लण्ड दे दूँगा। जब तक तू पूरी मेरी रांड नहीं बन जाती तब तक तू तड़पेगी। तड़प तो मैं तुझसे ज्यादा रहा हूँ राड़। तुझे थोड़ी जल्दी करनी चाहिए थी, तेरी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी?”

सोचता हुआ शंभू दुकान चल पड़ा और अपने प्लान को माडिफाई करने लगा। वो प्लान जिसमें एक सीधी सादी शरीफ पवित्र टाइप की लड़की को उसे अपनी रंडी बनाना था। उसके तन मन को अपने सामने समर्पित करवाना था। शाजिया का समर्पण चाहिए था उसे। रात में फिर शाजिया शाहिद से शंभू के बारे में ही बात कर रही थी।

शाजिया ने कहा- “आज शंभू जी लेट से आएंगे। दरवाजा बंद कर लेने बोले हैं। जब वो आएंगे तो काल कर लेंगे तब दरवाजा खोल देने बोले हैं…”

शाहिद- ठीक है। ज्यादा रात होगी क्या उन्हें?”

शाजिया “ये तो पूछी नहीं। बस इतना बोले और चले गये। मैं तो अंदर आने बोली भी लेकिन आए नहीं…”

शाहिद मुश्कुरा दिया, और बोला- “अरे वाह… आकर बोल गये। कल देखकर गये तुम्हें तो आज फिर से देखने का मन किया होगा। क्या पहनी हुई थी तुम आज?”

शाजिया बनावटी गुस्से में बोली- “नंगी थी… तुम्हें और कुछ तो सूझता है नहीं। तुमने देखा था ना उस दिन वो देखते भी नहीं मेरी तरफ…”

शाहिद- “तुम्हें दिखाकर थोड़े ना देखते होंगे। तुम्हारी जैसी हूर को कोई बिना देखे रह ही नहीं सकता। लेकिन उसे शर्म आती होगी की वो उतना उम्रदशंभू होकर भी तुम्हें देख रहा है। लेकिन एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की लार तो जरूर टपकती होगी उनकी मर्द जात ऐसे ही होते हैं। तुम्ही खोल देना दरवाजा, एक बार और देख लेंगे तुम्हें…”

शाजिया को शाहिद की बात में दम नजर आया- “उन्हें उम्र की वजह से शर्म आती होगी। हैं भी तो वो मेरे से दुगुने उम्र के उफफ्फ … इसीलिए वो इंसान अंदर ही अंदर तड़प रहा होगा। मुझे ही कुछ करना होगा उनके लिए? सोचती हुई फिर वो शाहिद को बोली- “मुझे तो उन पर दया आती है। मुझे देखते तक नहीं, बात करना तो दूर की बात है। लेकिन इतने सालों से अकेले ही अंदर-अंदर घुट रहे हैं। मेरी छोड़ो, तुमसे भी तो बात करके मन का बोझ हल्का कर सकते हैं…”

शाहिद हम्म्म… बोलता हुआ करवट बदलकर सोने लगा और शाजिया अभी का प्लान बनाने लगी- “दोपहर में तो वो हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। शाहिद अब सुबह ही जागने वाला था। शाजिया का मन हुआ की सच में नंगी ही जाकर दरवाजा खोल दूं। देखती हूँ बूढ़े मियां फिर देखते हैं की नहीं?” सोचकर वो खिलखिला दी।

शाजिया वही नाइटगाउन पहनी हुई थी। शाहिद के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वो बाडी लोशन लेकर अपने सीने पे और चूचियों पे अच्छे से लगा ली। उसकी चूचियां तो ऐसे ही गोरी थीं, अब और चमक उठीं। फिर उसने चेहरे को साफ किया और क्रीम और डी. ओ. लगा ली।

अब शाजिया ने नाइटगाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे खींच लिया और कालर को थोड़ा फैला ली। अब उसकी दोनों गोलाइयां गहराई के साथ दिख रही थीं। शाजिया अब दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी। शाजिया को नींद ही नहीं आ रही थी।

शाजिया मन ही मन सोच रही थी की कैसे दरवाजा खोलेगी और क्या करेगी? लेकिन शाजिया की इतनी हिम्मत नहीं हुई की शंभू से कोई भी बात सीधी कर पाए। वो अपने नाइटी को ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गई तो कहीं वो मुझे गलत टाइप की ना समझ लें।

फिर शाजिया को खयाल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हूँ, तो उन्हें लगेगा की मैं तो जाग कर उनका इंतजार कर रही थी। अगर मैं नींद में रही की किसी तरह की गलती हो सकती हैं। उसने फिर से ब्रा को उतार दिया और नाइटगाउन को ढीली कर ली। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

अब चलने पे उसकी चूचियां आराम से गोल-गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चूचियों में हो रही थिरकन साफ-साफ दिख रही थी। शाजिया अपने बाल बिखरा दी और चेहरे को भी पानी से धोकर उनींदा टाइप का चेहरा बनाने लगी। रात के 11:00 बज गये थे और शंभू का अब तक काल नहीं आया था।

शाजिया अपनी पैंटी भी उतार दी थी। वो दो-तीन बार बाहर झाँक कर भी आ गई थी शंभू आए या नहीं। उसने सोचा की मैं ही पूछ लेती हूँ लेकिन फिर उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद शाहिद के मोबाइल पे काल आया। शाजिया दौड़कर फोन उठाई तो शंभू जी लिखा हुआ था। शाजिया अपनी साँसों को कंट्रोल की और उनींदी आवाज में “हेलो” बोली।

शंभू ने कहा- “मैं आ गया हूँ, दरवाजा खोल दो प्लीज…”

शाजिया फिर से उनींदी आवाज में ही- “हाँ आती हूँ.” बोली और खुद को अड्जस्ट कर ली। उसने खुद को एक बार आईने में देखा और गाउन को ठीक से अड़जस्ट की जिससे क्लीवेज चूचियों की गोलाईयों के साथ दिखे। शाजिया ऐसे चलकर बाहर आई, जैसी कितने नींद में हो। उसने बाहर की लाइट जला दी और दरवाजा खोल दिया।

दरवाजा खुलते ही शंभू की आँखों के सामने शाजिया की गोरी चूचियां चमक रही थी। शंभू तो शाजिया की आवाज सुनकर ही लण्ड टाइट किए बैठा था। एक झटके में उसे अंदाजा लग गया की उसकी होने वाली रंडी अभी भी बिना ब्रा के है और उसी को दिखाने के लिए डीप नेक गाउन पहनी हुई है।

उसका मन किया की हाथ बढ़ाए और इन दूध से भरी रसमलाईयों को पकड़कर निचोर दे और चूस ले। शंभू को पता था की शाजिया भी यही चाहती होगी, और अगर उसने ऐसा किया तो छोटी मोटी आक्टिंग के अलावा और शाजिया कुछ नहीं करेगी।

लेकिन शंभू ने खुद पे काबू किया और बोला- “सारी, आप लोगों को परेशान किया….”

शाजिया उल्टे कदम ही पीछे होती हुई बोली। ताकी उसकी चूचियों की थिरकन को शंभू अच्छे से देख सके। कल शाहिद मौजूद था तो इन्हें बुरा लग रहा होगा लेकिन आज कोई नहीं है तो ये अच्छे से देख सकें मुझे। शाजिया बोली- “इसमें परेशानी की क्या बात है?”

शंभू ने दरवाजा लाक कर दिया और ऊपर जाने लगा। शाजिया को लगा की ये क्या हो रहा है। ये तो जा रहे हैं।

शाजिया तुरंत बोली- “खाना खाकर आए हैं या अभी बनाएंगे। आइए यहीं खा लीजिए, मैं बनाकर रखी हूँ…”

शंभू नजरें नीची किए हुए ही चलते हुए बोला- “नहीं शुक्रिया, मैं खाकर आया हूँ। सो जाइए आप भी शुक्रिया फिर से और माफी माँगता हूँ परेशान करने के लिए” बोलता हुआ शंभू सीढ़ियों पे चल दिया और शाजिया ठगी सी खड़ी की खड़ी रह गई। दोस्तों आगे की कहानी अगले भाग में… अभी तो शाजिया की चूत में शंभू को अपना लंड भी घुसाना है, जानने के लिए हमारी वासना डॉट नेट पढ़ते रहिये…

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