चूत पर टैटू बनवाने की कीमत

मेरा नाम अन्वेषा है मैं दिल्ली की रहने वाली हु मेरा एक बॉयफ्रेंड है हम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे होली में मैं उसे एक सरप्राइज देना चाहती थी। पर? कुछ साल पहले…. बड़ा प्यारा है वो! जब वह ‘मांगता’ है तो खुद को रोकना सचमुच मुश्किल हो जाता है। Hindi Sad Sex Story

ऐसे प्यार से, ऐसा मासूम बनकर मांगता है कि दिल उमड़ आता है उस पर। लालची या फरेबी तो बिल्कुल नहीं लगता। मन करता है लुटा दूँ खुद को उस पर। ऐसा भी खुद को बचाकर क्या रखना। सभी तो इंजॉय कर रहे हैं। मेरी कितनी सहेलियां कइयों से ‘लिवा’ चुकी हैं, मैं ही क्यों वंचित रहूँ।

सहेलियाँ मुझे बढ़ावा भी देती हैं। कहती हैं कैसा सुंदर है तेरा बॉयफ्रेंड; करवा ले न उसके साथ… कहीं छोड़ कर चला गया तो हाथ मलती रह जाओगी। दोस्तों की बातों, और सबसे बड़ी मेरे बॉयफ्रेंड की बार-बार मनुहार, का असर रहा होगा कि इस बार होली में मैंने उससे कह दिया, इस बार तुम्हें होली में कुछ खास गिफ्ट करूंगी, तैयार रहो।

उसने पूछा कि क्या गिफ्ट करूंगी तो मैंने कहा कि ऐसी चीज जो मैंने उसे कभी नहीं दी। अब वह बेचारा समझ रहा है कि मैं उसे ‘दूंगी’। लेकिन मैं सोच रही हूँ कि कुछ ऐसा करूं कि उसको ‘फाइनल’ चीज देने से बच जाऊं और वह खुशी से गदगद भी हो जाए।

मेरी एक सहेली ने बड़ा ही सुंदर सा टैटू अपने छातियों पर बनवा कर अपने बॉयफ्रेंड को सरप्राइज दिया था. मैंने सहेली से पूछा भी था कि वह टैटू आर्टिस्ट दिल्ली में कहाँ रहता है। पर उसने मुझे कुछ खास नहीं बताया। तब मैंने अपने से तलाश किया।

एक मिला, अभी नया ही काम शुरू किया था, मगर हाथ में सफाई थी। जवान बंदा था, मुझे थोड़ा डर लगा कि कहीं यह मुझे एक्सप्लॉयट न करे। पर सोचा मामला भी तो ‘वयस्क’ का है। अगर कुछ इसने करना चाहा तो देख लूंगी। देखने में खूबसूरत भी था।

मैंने उसे अपनी जरूरत बताई। बॉयफ्रेंड को सेक्स का मजा तो देना चाहती हूं मगर फ**** से बचना भी चाहती हूं, और यह मुझे होली में गिफ्ट करना है। मैंने सोचा था कि दोनों स्तनों पर ही होली से ताल्लुक रखता कोई संदेश टैटू करवाऊंगी। इस तरह मेरा ब्वायफ्रेंड मेरे स्तन देख लेगा और उनसे कुछ खेल भी लेगा।

लेकिन उस टैटू कलाकार का आइडिया इससे ज्यादा साहसी था। साहसी क्या, दुस्साहसी था। मैं संकोच में पड़ गई कि इतनी दूर पहली बार में ही जाना उचित होगा? भद्दा नहीं लगेगा? मैं कर पाऊंगी? लेकिन उसने मुझे आश्वस्त किया कि वल्गर नहीं लगेगा, कलात्मक ही होगा।

हैप्पी होली का विश – सिर्फ छातियों तक ही क्यों? इससे तो वह धोखा खाया-सा महसूस करेगा। उसे लगेगा तुमने ऊपर ऊपर ही निपटा दिया। अगर गिफ्ट का मजा गाढ़ा बनाना चाहती हो तो और आगे जाओ। सचमुच… मुझे भी लगा जहाँ वह पूरे सम्भोग की उम्मीद कर रहा है वहाँ केवल स्तनों तक ही सीमित रहने से बहुत फीका हो जाएगा।

लेकिन टैटू कलाकार का आइडिया केवल जांघें खोलने तक का नहीं था, भगों को भी नंगा रखने का था। यह बहुत ही डेयरिंग था, पुसी भी दिखानी पड़ेगी। मैं कुछ देर ठिठकी, फिर बिंदास होकर उसका आइडिया कबूल कर लिया। उसने मुझे होली के ही दिन सुबह-सुबह आने को कहा, बोला कि मैं उसकी पहली ग्राहक हूंगी।

बाद में पता चला उस दिन मैं उसकी अकेली ही ग्राहक थी। उसने मुझे बार-बार आश्वस्त किया कि मुझे निराश नहीं होना पड़ेगा। मैं होली की सुबह बिल्कुल साफ-सुथरी, अंदर से सेंटेड होकर उसके पास पहुंची। उसने मुझे अंदर के बालों को मूड़ने से मना किया था। बोला था, बालों की ड्रैसिंग उसी दिन करेंगे।

उसने मुझे बता ही दिया था मुझे उसके सामने बिल्कुल खुलकर, और अपने को बिल्कुल खोलकर बैठना पड़ेगा। उसके निर्देशानुसार मैं घाघरा पहन कर पहुंची थी। पहुँची तो वह तैयार था, बाहर ही खड़ा इंतजार कर रहा था। नहाया-धोया, एकदम फ्रेश! मुझसे हाथ मिलाया और गुड मॉर्निंग बोला। पुरुष के नजर की यही तारीफ औरत को कमजोर कर देती है। अच्छा कोलोन वगैरह लगाकर महक रहा था।

क्यों न हो, एक सुंदर लड़की की पुसी के दीदार का दुर्लभ मौका मिल रहा था। मैंने मुस्कुराकर उसके गुड मॉर्निंग का जवाब दिया। अंदर जाकर उसने कुछ सामान्य बातें पूछीं जिन्हें करने का उसने मुझे पहले ही निर्देश दे दिया था। उसने मुझे तौलिया दिया और घाघरा उतारने देने को कहा।

मैंने सोचा था शुरू में पैंटी पहने रहूंगी लेकिन उसने कहा कि बाद में पैंटी उतारते समय टैटू खराब हो जाएगी। मुझे खुद पर ताज्जुब हो रहा था कि कहाँ तो इतनी रूढ़िवादी हूँ कि ब्वायफ्रेंड को अभी तक स्तन भी देखने नहीं दिए, कहाँ यह मैं इस अनजान के सामने पूरी तरह नंगी हो रही हूँ। लेकिन मैं बिंदास थी। करना है तो करना है, बस!

लेकिन पैंटी उतारने के बाद ऐसी शर्म आने लगी कि रोयें खड़े हो गए। मैंने सोचा था मुझे वह गद्देदार मजेदार कुर्सी पर बिठाएगा। पर उसने मुझे टेबल पर चढ़कर पंजों पर ‘चुक्को-मुक्को’ बैठने का निर्देश दिया। छी, कितना बुरा लग रहा था जैसे इन्डियन टॉयलेट पर पॉटी करने के लिए बैठी हूँ।

बैठने पर तौलिया इस तरह उठ गया था कि नीचे सबकुछ खुल गया था। सोच रही थी, मैं ये क्या कर रही हूँ। वह मेरी खुली टांगों के बीच कुर्सी लगाकर बैठ गया। तौलिया यूँ भी नामभर को था, उसको भी हटाकर उसने मेरी पुसी का ठीक से मुआयना किया।

पेंसिल लेकर उसने दोनों जांघों पर बीच से बराबर दूरी रखते हुए निशान लगाए। कुछ निशान उसने भग-होठों के दोनों तरफ भी उसने लगाए। फिर उसने एक दूसरी पैंसिल लेकर लिखना शुरू किया। पैंसिल की नोक चलने पर जांघ में गुदगुदी होने लगी।

कुछ देर तक उस गुदगुदी के मारे स्थिर नहीं रह पाई। कुछ देर की प्रैक्टिस के बाद ही उसके लिखने लायक स्थिर हो पाई। जब वह मेरी बाईं जांघ पर लिख रहा था उस वक्त मैंने यथासंभव योनि होठों को और दाईं जांघ को तौलिये से ढक लिया था।

बाईं जांघ पर लिखने के बाद उसने मेरी दाई जांघ पर एक दूसरा शब्द लिखा। लिखने के बाद उसने मुझे आइना थमाया। बड़े अक्षरों में एक जाँघ पर ‘हैप्पी’ और दूसरी पर ‘होली’ लिखा था- ‘हैप्पी होली’ बड़ी कलात्मक लिखाई थी।

मानना पड़ेगा कि स्त्री की खुली योनि को देखते हुए भी कोई कलाकार होशो-हवास सलामत रखकर सुंदर लिखाई को अंजाम दे सकता है। लेकिन दोनों शब्दों के बीच योनि होठों और बालों की गहरी कालिमा तो अच्छी नहीं लग रही थी। मैंने कहा, इतना तो पैंटी पहनकर भी दिखाया जा सकता है? पुसी दिखेगी तो संदेश गंदा लगेगा, होली की हैप्पीता और पवित्रता का एहसास चला जाएगा।

लेकिन अभी उसका काम समाप्त नहीं हुआ था। उसने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया। कई कलाकार एक बार तय कर लें तो टोका-टोकी पसंद नहीं करते। मैंने अभी तक अपनी पुसी पर तौलिये का कोना दबा रखा था। उसने उसे मेरे हाथों को हटा दिया और मेरी कमर से तौलिया खींच लिया।

मैं ऊपर टी-शर्ट में लेकिन नीचे पूरी तरह नंगी थी और वह मेरी भगों में सीधे देख रहा था। गुदा का छिद्र भी उसे साफ दिख रहा होगा। मैं तो शरम से मर ही गई थी। कुछ देर तक उसने उसका अच्छे से मुआयना किया। उसके बाद उसने उस्तरा उठाया और पेड़ू के बालों को धीरे-धीरे मूंड़ना शुरू किया। बाहर से अंदर होटों की ओर।

रेजर से बालों के कटने की किर-किर आवाज अजीब और उत्तेजक लग रही थी। मूड़ते हुए क्रमशः होठों की ओर बढ़ते हुए उसने होठों के बाहर बाहर लगभग एक अंगुल चौड़ाई में बाल छोड़ दिए। होठों के किनारे-किनारे पौन इंच तक घने काले बालों का बॉर्डर और उसके बाद सफाचट गोरा मैदान।

जैसे गेट के किनारों पर किसी ने घास की सजावट करके छोड़ दिया हो। बैठे-बैठे मेरे पाँव थकने लगे थे और होठों व योनि में इन गतिविधियों से गीलापन आने लगा था। निश्चित ही उसे उसकी गंध मिलने लगी होगी। इसलिए मैं कुछ देर रुकने का समय चाहती थी।

वह उठा और बाथरुम चला गया, लगभग 5 मिनट बिताकर निकला। मुझे लग गया कि उतनी देर में वह बाथरूम में हाथ से अपनी उत्तेजना शांत करके आया है। उसके चेहरे पर लाली थी। फिर भी मुझे उस पर गुस्सा नहीं आया, बल्कि उल्टे मुझे अच्छा लगा।

उतनी देर में मेरी भी ‘गर्मी’ कम हो गई थी। उसने फिर काम शुरु किया। अब उसने कैंची से बालों को धीरे-धीरे कुतरना शुरु किया। उन्हें इच्छित लंबाई तक लाने के बाद ब्रश से कटे बालों को झाड़ दिया। अभी तक मुझे उसकी डिजाइन का कुछ खास आइडिया नहीं था। इतना जरूर मालूम था वहाँ कोई तस्वीर बनाने वाला है।

मुझे काफी गुदगुदी हो रही थी। उसने मुझे स्थिर रहने को कहा नहीं तो तस्वीर बिगड़ जाएगी। मैं जिस तरह बैठी थी, मेरे योनि के होठों की फांक उसकी नाक की सीध में खड़ी थी; ऊपर क्लिट से संकरे कोण से शुरू होकर होंठों के बीच कुछ दूर तक समान अंतर के बाद नीचे फैलते हुए चूतड़ों की फाँक।

उसने फाँक के दोनों तरफ जाँघों पर आधे-आधे दीपक की आउटलाइन खींची। अब मुझे समझ में आ गया वह क्या बना रहा है। सस्पेंस को बनाए रखते हुए उसने सुनहले रंग में कूची डुबोई और फाँक के किनारे किनारे बालों को रंगना शुरू किया। बालों पर हल्के हल्के ब्रश चलाते हुए उसने उन्हें इस तरह रंगा कि कुछ बाल काले रहें, कुछ सुनहरे।

मैं मुस्कुरा रही थी। मुझे गुदगुदी के साथ-साथ उत्तेजना हो रही थी। योनि का गीलापन इतना बढ़ गया था कि होंठों के बीच लसलसा तार बन जा रहा था। उसने जब वहाँ तौलिया दबाकर सुखाया तो मेरे गीलेपन का खुला इकरार हो गया।

मैं सोच रही थी मेरे इतने दिन से प्रेम की प्यास में पड़ा हुआ बॉयफ्रेंड जिसे देख तक नहीं पाया है, उसे यह नामुराद खुलकर देख रहा है। देख ही नहीं, उसे छू और सहला भी रहा है। मन में ख्याल आया कि अगर यह उसे चूम ले, चाट भी ले तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

भगों में जिस तरह गुदगुदी और सनसनी हो रही थी उसमें कभी-कभी लगता था, काश यह हिम्मत करके ऐसा कर ही दे। मैं उसे हल्का-फुल्का डाँटकर छोड़ दूंगी और उसे करने दूंगी। लेकिन यह बंदा कुछ ज्यादा ही शरीफ था। शायद कलाकार का अपना मिजाज था कि जब वह रच रहा होता है तो हर लोभ-लालच से दूर होता है।

बालों को रंगने के बाद उसने उन्हें फूंक फूंक कर सुखाया। अब उसने ब्रश लेकर आउटलाइन के अंदर रंग भरना शुरू किया। उसकी कूची पुसी में ऊपर से नीचे घूमते हुए नीचे जाकर कभी कभी गुदा के छेद को भी छू जाती थी। बालों की उस छुअन से इतनी सुरसुरी होती थी कि मुझे उसे बीच-बीच में रुकने के लिए कहना पड़ता था।

आख़िरकार उसने योनि होठों की विभाजक रेखा के निचले हिस्से में दोनों चूतड़ों पर आधे-आधे दीपक बना दिए। जांघों को पूरी तरह फैलाए रखने में मेरी कमर और पांव बुरी तरह दुख गए थे। चित्र पूरा करके उसने मुझे आइना पकड़ा दिया।

वाह… एक बहुत ही सुंदर कल्पना साकार हो रही थी। आइने में मैं देख रही थी कि एक एक जांघ पर ‘हैप्पी’ और ‘होली’ लिखी थी और दोनों शब्दों के बीच जांघों के जोड़ में दीपक जल रहा था। योनि के हल्के खुले होठों के अंदर की लाली दिए की लौ के बीच की लाली बन गई थी और होंठों के किनारों पर के बाल लौ के बाहरी पीले-भूरे रंग।

बालों में लगा सुनहरा रंग ऐसा लग रहा था मानो दिए की लौ से सुनहरी आभा बिखर रही हो। उसने हैप्पी होली की रेखाओं को रंगों से मोटा और गाढ़ा करके काम समाप्त कर दिया। कुछ देर यों ही बैठने के लिए कहा ताकि रंग अच्छे सूख जाएँ। उसने ब्लोअर से हवा भी लगा दी। मैं उसे पैसे देने लगी तो उसने पैसे लेने से मना कर दिया। बोला कि पहले जिस काम के लिए टैटू बनवाया है वह काम कर लूँ। पसंद आया तभी पैसे लेगा।

“ऐसे ग्राहक रोज रोज नहीं मिलते इसलिए खास मन से काम किया है, आपके और ब्वायफ्रेंड को पसंद आएगा तो उसे अपनी कला की सफलता मानूंगा।”

मुझे अजीब लगा पर उसकी इच्छा देखते हुए बात मान ली। शायद वह देखना चाहता था कि बॉयफ्रेंड को दिखाने के बाद मेरी क्या गत हुई… चुदी या नहीं। या शायद वह पैसे के अलावा मुझसे कुछ ‘एक्स्ट्रा’ पाना चहता था।

जो हो, बंदा भला था, काम के दौरान उसने किसी प्रकार की कोई गलत हरकत नहीं की थी, इसलिए मैं भी उसके प्रति कुछ उदार होने को तैयार हो गई। (वैसे इच्छा तो मेरी भी होने लगी थी।) ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी होली से ज्यादा थे।

क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?

मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।

मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार  सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी। ब्वायफ्रेंड से मिलने जाते समय मन में शंकाओं-चिंताओं-रोमांचों के जितने पटाखे फूट रहे थे, वे इससे पहले की किसी भी होली से ज्यादा थे। क्या होगा, कैसे दिखाऊंगी उसको, शुरुआत ही कैसे करूंगी। क्या सोचेगा वो? मुझे सस्ती या चालू तो नहीं समझ लेगा? हाय राम, क्या मैं सचमुच उसके सामने टांगें खोलूंगी? मगर अभी उस कलाकार के सामने अपने को मैं कैसे नंगी दिखा सकी? मैं सही दिमाग में तो हूँ न? पागल तो नहीं हूँ?

मैं गाड़ी में ठीक से बैठी भी नहीं कि रंग न उखड़ जाएँ हालाँकि उसने मुझे आश्वस्त किया था कि बैठने से या कपड़ों की रगड़ से या पानी लगने से चित्र नहीं छूटेगा। मिटाने के लिए खास द्रव से धोना पड़ेगा, उसके लिए मुझे उसके पास आना होगा।

मगर मन कहाँ मानता है; मैं कार सी सीट पर चूतड़ को आधा उठाए ही बैठी थी। वह बाहर ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने चलने से पहले फोन कर दिया था- आ रही हूँ। लेकिन मेरे पास वक्त बहुत कम है। तुरंत लौट जाऊंगी।

ऐसा मैंने अपना भाव बनाए रखने के लिए और अपनी सुरक्षा के लिहाज से भी किया था कि अगर सिचुएशन से बाहर निकलना पड़े तो आसानी हो। मुझे देखते ही वह खिल पड़ा था; गाड़ी रुकते ही उसने मेरा दरवाजा खोला और तुरंत पूछकर ड्राइवर को पैसे दिए और बड़े मान से अपने कमरे में ले गया, बोला- आज होली के दिन मेरे घर लक्ष्मी आई है। वह एक पूजा की थाली लेकर आया और मेरे कपाल पर तिलक लगाकर मेरी आरती उतारने लगा।

“अरे ये क्या नाटक कर रहे हो?” पर उसने मेरा मुँह बंद कर दिया- मुझे अच्छा लगता है।

उसने थाली में से लेकर मुझ पर फूल की पंखुड़ियाँ बरसायी- मैं देवी लक्ष्मी की पूजा कर रहा हूँ।

मुझे बड़ी हँसी आ रही थी- तुम एकदम पागल हो। मालूम होता कि मुझे इतना बनाओगे तो नहीं आती। पूजा समाप्त करके थाली रखी और मेरे दोनों कंधे पकड़कर बोला- देवी आज कुछ खास आशीर्वाद देने वाली हैं ना?

“हूँ…” मैंने गला खँखारा- देवी का आशीर्वाद पाने के लिए कंधे नहीं, चरण पकड़ने चाहिए, स्टुपिड!

वह झट मेरे सामने फर्श पर बैठ गया; मेरे पैर पकड़ने लगा तो मैंने रोक दिया, उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया- तुम्हारा कल्याण हो वत्स!

वह मेरा मुँह देखता रह गया। बस इतना ही? मुझे उस पर दया आने लगी लेकिन कुछ देर तड़पाने का मजा लेना चाहती थी।

“और भी देवियों से आशीर्वाद लिया?”

“किसी से नहीं, तुम पहली हो।”

“और दूसरी?”

“कोई नहीं, तुम्हीं आखिरी भी रहोगी… अगर…”

“अगर?”

“पूरे मन से आशीर्वाद दोगी।”

“हूँ… देखती हूँ तुम उतने बुद्धू नहीं हो!” कहते हुए मैंने अपना एक पैर उठाकर उसके एक कंधे पर रख दिया। मेरा घाघरा जमीन पर पड़े दूसरे पैर से थोड़ा ऊपर उठ गया। वह पैर के उस नंगे हिस्से को देखने लगा।

“क्या आशीर्वाद चाहिए, बोलो?”

उसने सिर उठाकर मुझे देखा और बोला- तुम… तुम खुद एक पूरी की पूरी आशीर्वाद हो।

“बहुत चापलूस हो। कुछ ज्यादा नहीं मांग रहे हो?”

“तुमने वादा किया था।”

वह फिर मेरे उस घाघरे से बाहर निकले पैर को देखने लगा। मैंने पैर के बालों की वैक्सिंग करा रखी थी, उंगलियों में नई नाखूनपॉलिश लगाई थी।

“मैंने सिर्फ होली विश करने का वादा किया था, और कुछ नहीं।” कहते हुए मैंने दूसरा पैर उठाकर उसके दूसरे कंधे पर रख दिया।

उसके चेहरे पर निराशा सी आई; मुझे क्रूरता में आनंद आ रहा था, मैंने घाघरा को थोड़ा ऊपर खींचा।

“ठीक है, तो वही विश कर दो।” वह मेरा खेल कुछ कुछ समझने लगा।

कोई लड़की यूँ ही उसके कंधों पर दोनों पाँव नहीं रख देगी। उस स्थिति में वैसा करने से मेरा पूरा पेड़ू उसके चेहरे के सामने आ गया था, भले ही वह अभी घाघरे के अंदर था।

मैंने कहा- अब समय हो गया, मुझे जाना है!

उसने मेरे दोनों पैर पकड़ लिए। बचने के लिए मैंने घाघरे को पकड़ा तो घाघरा खिसककर घुटनों तक उठ गया। उसे अंदर मेरी नंगी जांघों की निचली सतह दिखने लगी होगी। मैं सहारा पाने का अभिनय करते हुए पीछे झुक गई।

“कहाँ जाओगी?” मेरा पैर कन्धों पर लिए ही वह उठ गया। और जो होना था वही हुआ। मैं बिस्तर पर पीठ के बल गिर गई, घाघरा सरककर मेरे पेट पर आ गया। यह सब एक क्षण में हो गया। मेरे दोनों टखने उसकी हथेलियों में थे और वह उन्हें फैलाए कमरे की जगमगाती रोशनी में उनके बीच में देख रहा था।

“माय गॉड!” वह आँखें फाड़े देखता रह गया- ये क्या है?

मैंने हिम्मत करके बोल दिया- हैप्पी होली, डार्लिंग!

“मगर…!”

“क्या?”

“कुछ नहीं!” कहकर उसने गोता लगाया और सीधे बीच में दीपक को लौ पर मुँह लगा दिया।

मैं उछल पड़ी। इसके पहले कि मैं उसे ऊपर खींच पाती उसने दनादन वहाँ पर दो-तीन चुम्बन और दाग दिए- चुस… चुस… चुस…

मैंने कहा- अरे, मुझे भी विश करो।

“हैप्पी होली!” उसने हड़बड़ाकर कहा और ऊपर आकर मेरे होंठों पर आकर वह चूमने लगा। रंग और योनि की मिली-जुली गंध जो नई और उत्तेजक थी।

मैंने उसके चुम्बनों का जवाब दिया।

“बहुत सुंदर है, बहुत ही सुंदर… लेकिन…”

“लेकिन क्या?”

“इसे बनाया कैसे?” लेकिन मेरे जवाब का इंतजार किए बिना फिर से मुझे चूमने लगा। चूमते चूमते वह ‘कमाल का है, ‘अद्भुत’, ‘फैन्टास्टिक’ वगैरह कर रहा था। मैं भी उसके भार के नीचे दबी उसके चुम्बनों का जवाब दे रही थी।

वह मेरी टॉप पेट पर से ऊपर खिसकाने लगा, मैंने उसे रोका, वह टॉप के अंदर हाथ घुसाकर मेरी छातियाँ सहलाने लगा। मर्द का यह जोर और आवेग मुझे अच्छा लग रहा था लेकिन लगा कि ऐसे उसको बढ़ने दिया तो चुद ही जाऊंगी, मैंने रोका- देवी से ऐसे जबरदस्ती करते हैं क्या? रुको। जवाब में वह मेरे पेड़ू पर अपना पेड़ू रगड़ने लगा। योनि होंठों पर उसके पजामे के नीचे सख्त लिंग का दबाव महसूस होने लगा।

“रुको” मैंने उसे जोर लगाकर ठेला- आज के दिन कोई जबरदस्ती नहीं! कहाँ तो मुझ पर फूल छिड़कना, और कहाँ यह जबरदस्ती?

वह रुक गया। मैंने हँसकर उसकी ठोड़ी पकड़ी और नाटकीय आवाज में कहा- वत्स, आज तो देवी तुम्हें स्वयं आशीर्वाद दे रही हैं। हड़बड़ी क्यों करते हो?

मैंने उसे बिस्तर से दूर कुर्सी पर बैठने को कहा। वह बेमन से वह जाकर कुर्सी पर बैठ गया। मैंने अपनी टॉप का किनारा पकड़ा और सिर के ऊपर खींच लिया; अंदर मैंने समीज पहनी थी। सुबह पैंटीहीन रहने की विवशता देखते हुए आज मैंने ब्रा भी नहीं पहनी थी। ऐसे में चुद जाने का खतरा जबरदस्त था, मैंने कमान अपने हाथ में ही रखने के लिए कहा- वहीं बैठे रहना, नहीं तो चली जाऊंगी।

वह बोला- खुशी की बात में भी धमकी क्यों देती हो?

मैंने अपनी समीज उतार दी, मेरे नंगे स्तन देखकर वह दीवाना हो गया और उठकर मेरे पास आ गया। मैंने किसी तरह उसे ठेला; सचमुच यहीं पर छोड़कर घर चले जाने की धमकी दी। अब इतना शरीफ तो वह था ही कि जोर आजमाइश नहीं करता; मिन्नतें करने लगा- एक बार, बस एक बार छूने दो।

मैंने दया दिखाई तो उसने न केवल छूआ बल्कि सहलाया भी। इसके बाद स्वाभाविक था कि वह चूमने की भी जिद करता। मैंने “बस इससे ज्यादा नहीं…” करते करते उसे अच्छा खासा चूमने और चूस भी लेने दिया। मैं समझ रही थी थी कि उसे सीमा के अंदर रखकर खुद को सम्हाले रखना है नहीं तो अपनी उत्तेजना के आगे मैं खुद मजबूर हो जाऊंगी।

स्तनों को छोड़ा तो मेरे फिर से मेरे भगों पर लपक गया। एक बार वहाँ का स्वाद ले चुका था। मैं वहाँ पर उत्तेजित होने से बचना चाहती थी हालाँकि उत्सुक भी थी क्योंकि सारी तैयारी तो मैंने उसी में की थी। वह जांघों पर लिखी ‘हैप्पी’ और ‘होली’ को छोड़कर बीच में दीपक को ही देखे जा रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

उसने भगोष्ठों के किनारे-किनारे बालों के तटबंध में उंगली फिराई और फिर बीच कुंड में उंगली डुबो दी। उसने उसमें उंगली चलाई और निकालकर मुँह में चूस लिया। देखकर ही मेरी योनि मेंढक की तरह फुदकने लगी।

अब अगर इसने फिर से उसमें मुँह लगाया तो मैं तो गई। वह चाटने के लिए झुका तो मैंने जांघें बंद कर लीं। मेरे अंदर से द्रव की लहर-सी उठकर होंठों के बीच छलछला गई। मैं आँखें मूंदकर बदन में हो रही आनंददायी सिहरन को महसूस करने लगी।

वह मंत्रमुग्ध मुझे देख रहा था, बोला- ये क्या था, तुम क्लाइमेक्स कर रही थी क्या?

मैं उठकर बैठ गई- अब चलती हूँ।

मुझे अपनी वैल्यू बनाए रखनी थी। वह मेरा प्रेमी था।

“लेकिन…” उसका सवाल फिर उपस्थित हो गया, चेहरे पर वही शिकन- ये दीया वहाँ आया कैसे? तुम तो खुद नहीं बना सकती।

“नहीं।”

“किसी से बनवाया है।”

“हाँ, एक टैटू कलाकार से!”

“तो तुमने उसे अपना सब कुछ दिखाया? बल्कि उसे…” उसके अंदर दबी अधिकार भावना अब उभर रही थी।

“ये तुम्हें अब याद आया?”

वह चुप रहा। कैसे बोलता कि उस समय मजा लेने की जल्दी थी।

“मुझे तो कभी छूने तक नहीं दिया और अचानक से एक बाहरी आदमी के सामने सब कुछ?”

“यह सब मैंने तुम्हारे लिए किया।”

“मगर ये तो गलत है।”

“मैं ऐसी ही हूँ। और शादी के बाद भी ऐसी ही रहूंगी।”

बोलते ही मुझे खुद पर बड़ा गुस्सा आया कि ये शादी की बात क्यों मुँह से निकली।

“आई थी यह सोचकर कि आज तुमको ग्रेट तोहफा दूंगी। यूनीक और डेयरिंग। लेकिन तुम भी दूसरे लड़कों की तरह ही निकले। इतनी मुश्किल से यह पेंटिंग बनवाई और तुम…” बोलते मेरी आँखें लरज गईं।

मैंने अपनी समीज पहनने के लिए उठा ली।

उसने मेरे हाथों में समीज पकड़ ली- तो वह ग्रेट तोहफा दे दो ना, मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ।

“मेरा जो मन था वह मैंने अपनी मर्जी से दिया, कोई परवाह नहीं की; अब और नहीं; छोड़ो।” मैंने उसके हाथों से खींचकर समीज पहन ली।

उसने मेरा टॉप अपने कब्जे में ले लिया- प्लीज, मान जाओ, मैं सॉरी बोल रहा हूँ ना।

“मेरा टॉप दो।”

“प्लीज…”

“कोई फायदा नहीं।”

समीज में मेरे स्तन ढक चुके थे और मैं एक हद तक सुरक्षित थी।

उसने मुझे आलिंगन में लेने की कोशिश की।

“तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे?”

“नो नो, आय लव यू… मुझे माफ कर दो!”

मैं गुस्से से खड़ी हो गई- तुमने मुझे क्या समझ रखा है? रण्डी? मेरे कपड़े मुझे दे दो!

वह डर गया। मैंने उसके हाथ से टॉप ले लिया, टॉप पहनी, घाघरा ठीक किया, जूते पहने और चलने को हुई।

“जस्ट एक मिनट रूक जाओ, मेरी बात सुनो।”

“बोलो?”

“कोई और तुम्हें अंदर के हिस्से तक देखे तो बुरा लगना स्वाभाविक है। तुम यूँ ही आतीं तो मुझे अच्छा लगता।”

“अभी तो हमारे बीच कुछ हुआ नहीं, और तुम इतना पजेसिव हो रहे हो? उधर उस कलाकार ने मुझे गलत इरादे से छुआ तक नहीं। तुम जो और और बातें सोच रहे हो, वह तो बहुत दूर की बात है। मुझे सफाई नहीं देनी पर तुम्हारा भ्रम दूर करने के लिए बोल रही हूँ।”

वह कुछ आश्वस्त सा हुआ, बोला- देखो मैं तुम्हें खो नहीं सकता! आय लव यू!

मेरे अंदर आग की तेज लपट-सी उठी, मैंने कहा- मैं जा रही हूँ। उसी कलाकार के पास। इस बार जो तुमसे नहीं कराया वह कराने। टु गेट प्रॉपर्ली फक्ड। उसके बाद भी तुम्हारा मन होगा तो बोलना आय लव यू।

वह आँखें फाड़े मुझे देखता रह गया, मैं बाय कहकर निकल पड़ी। बाहर मैंने टैक्सी रुकवाई और बैठ गई। मैंने ड्राइवर को तेज गाड़ी चलाने कहा। मैं आवेश में थी, क्या बोल गई। इतना बेशरम मैं कैसे हो सकती हूँ? क्या सोचकर आई थी और क्या हो गया। उसने मेरी भावनाओं और इतने सुंदर आर्ट की कद्र नही की।

खिड़की से बाहर खंभे, मकान, पेड़ आदि तेजी से गुजर रहे थे। मैं भी इस गाड़ी की तरह आज कितनी ही चीजों को पीछे छोड़ते आगे बढ़ी जा रही थी। कहाँ तो एकदम परम्परागत लड़की थी – शादी से पहले नो किसिंग, न हगिंग, फकिंग तो बहुत दूर की ही बात थी।

लेकिन आज एकबारगी न सिर्फ टैटू वाले के सामने टांगें खोलकर चूत पर चित्र बनावाया बल्कि अपने ब्वायफ्रेंड, जिसको लाख मनाने के बावजूद अपनी छातियों को महसूस भी न करने दिया था, उससे बूब्स और पुसी दोनों को चुमवा और चुसवा भी लिया।

लेकिन उसने मेरी हिम्मत और लगाव को किस रूप में लिया? मुझे बार-बार आँखें पौंछनी पड़ रही थी। कलाकार की दुकान को देखकर मैं चौंकी कि मैं सचमुच यहीं आ गई। मैंने गुस्से में टैक्सी वाले को यहीं का पता दिया था।

मुझे देखते ही खड़ा हो गया- अरे तुम? इतनी जल्दी? वहाँ गई भी या नहीं?

“मैं वहीं से आ रही हूँ।”

“ओके, गुड” उसने मुझे इज्जत से बिठाया और बोला- “वेलकम अगेन!

“कैसा रहा?”

“वंडरफुल, फैंटास्टिक…”

“तुमने कर लिया?”

“हाँ।”

“लेकिन तुमने बहुत जल्दी निपटा लिया? मजा आया तुम्हें?”

इस सवाल में उसका अपना मतलब भी निकलता था। निकलने दो, कौन ये मेरा प्रेमी है। प्रेमी ने तो फूल बरसाए और फिर अपमानित किया। यह क्या करेगा? करने दो जो करता है। मेरी नजर उसकी पैंट में चेन के पास चली गई। आज मैं अपने बॉयफ्रेंड का वो भी देखना चाहती थी, उसका मौका ही नहीं आया।

मैंने कहा- हाँ और नहीं दोनों।

“अरे! ऐसा कैसे?”

“तुम अब ये टैटू मिटा दो।” कह कर मैं उसी टेबल पर जा बैठी जिस पर गुदना बनवाया था।

“वहाँ नहीं, यहाँ बैठो” उसने मुझे अपनी सुंदर गद्देदार कुर्सी पर बैठाया।

“वो खास तौर पर होली का गिफ्ट है। कम से कम आज भर तो रखो। वैसे भी मुझे अपने आर्ट को इतना जल्दी रिमूव करने में दुःख होगा।”

मैं उसके चेहरे को देखती रह गई; क्या बोल रहा है, इसको आज फिर से मेरी पुसी देखने का मौका मिल रहा है और यह उसे छोड़ रहा है। कह रहा है अपने आर्ट को रिमूव करने में दुख होगा। मेरे प्रेमी ने तो ठीक से देखा तक नहीं और तुरंत उस पर मुँह लगा दिया और यह उतनी देर तक देखकर भी अविचलित रहा। दुबारा आई हूँ तब भी फायदा उठाने की चिंता में नहीं है। आर्ट की कद्र करने को कह रहा है।

मैंने सिर झुका लिया, मेरी आँखें डबडबाने लगीं। उसने मेरे कंधे थपथपाए, मेरे हाथ से आँसुओं से भींगा रुमाल लेकर सूखने के लिए फैला दिया। “नैस हैंकी…” उसका इतना अधिकार दिखाना और अप्रत्यक्ष तारीफ करना मुझे अच्छा लगा।

“अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो मैं पूछ सकता हूँ कि क्या हुआ? तुमने कहा कि एंजॉय किया भी और नहीं भी किया?”

मैंने शब्दों के लिए अटकते अटकते उसे संक्षेप में घटना कह सुनाई। घटना ही ऐसी थी। मैंने उसको ब्वायफ्रेंड को बोली हुई अंतिम बात नहीं बताई कि उसी कलाकार के पास फिर से जा रही हूँ ‘टू गेट प्रोपरली फक्ड…’ मेरी बात सुनता हुआ वह नॉर्मल रहा। लेकिन साथ ही मैंने नोटिस किया कि उसकी पैंट में उभार लगातार बना रहा था, उसे अपने मनोभावों पर नियंत्रण करना आता था।

“तुम कितनी अच्छी लड़की हो… उसने तुम्हारी कद्र नहीं की!”

“अब क्या फायदा… मिटा दो इसे!”

“ना.. नहीं… बल्कि मैं तो इसे और सुधारना चाहता हूँ!”

“वो क्यों?”

“यह तुम्हारा फैसला था, तुम्हारी उसके लिए वेल विशिंग थी… यू लव्ड हिम, इसलिए तुमको सॉरी फील नहीं करना चाहिए। बल्कि तुम्हें इसकी खुशी मनानी चाहिए.”

मुझे लग रहा था कि यह मुझे फिर से वहाँ पर देखना करना चाहता है, मैं सोचने लगी।

“क्या तुम फिर से मुझे वहाँ पर देखना चाहते हो?” मैंने पूछ ही लिया।

वह हँस पड़ा, “यू आर सो इन्नोसेंट!”

इसका मतलब क्या हुआ? मैं सोच में पड़ गई। क्या मैं बेवकूफ हूँ? ऐसे काम करने वाली लड़की बेवकूफ न होगी तो क्या होगी। वह गया और अपनी पेंसिलें कूचियाँ ले आया। मेरे पैरों के पास एक पिढ़िया रखकर बैठ गया। इस बार उसका नीचे बैठना भी खास मकसद का लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

उसने मेरे पैर उठाकर कुर्सी की सीट पर ही मेरे नितम्बों के पास रख दिए। मैंने अपना मोबाइल चेक किया। स्क्रीन पर कोई मिस्ड कॉल का नोटिफिकेशन नहीं था। कहीं साइलेंट तो नहीं है? नहीं, रिंग का वॉल्यूम फुल था।

कलाकार मेरी ‘उस’ जगह को गौर से देख रहा था। मैंने कुर्सी की बैकरेस्ट पर सिर रख दिया। होने दो जो होता है। आज होली है। मैरी कैसी होली मन रही है! मुझे पेंसिल की चुभन महसूस हुई। मैंने आँखें मूंद लीं। माता, मुझे माफ करना। पेंसिल की नोक की चुभनें, ब्रश की सरसराहटें, कभी कभी कुछ रगड़ना मैं इन सबको महसूस करके भी जैसे नहीं कर रही थी। चित्रकार ने ज्यादा समय नहीं लिया।

“ये रही तुम्हारी तस्वीर!” उसने मुझे आइना दिया. मैंने देखा, ‘हैप्पी’ और ‘होली’ शब्दों के नीचे उसने एक एक कलश और स्वस्तिक का निशान बना दिया था।

मुझे लगा, यह भी ज्यादा हो गया। मैं इतनी हैप्पी कहाँ थी- तुम मुझे ओवररेट कर रहे हो! आय एम ए चीप गर्ल!

“नेवर से सो (ऐसा हरगिज मत कहना)”

मेरे मोबाइल की घंटी बजी, लपककर मैंने उठाया, उसी का फोन था। इतनी देर लगी उसे फिर से फोन करने में! मैंने फोन काट दिया।

वह मुझे देख रहा था- मेरी पुसी से लेकर चेहरे तक, एक सीध में। जलती हुई लौ के अंदर मेरी योनि। उसके दोनों तरफ स्वस्तिक और कलश के हैप्पी के प्रतीक।

“इसे एक दो दिन तक जरूर रखना!” कहता हुआ वह उठने लगा।

मैंने उसके कन्धे दबा दिये, वह पुनः बैठ गया। मैंने उसका सर पकड़ा और अपनी ओर झुकाकर धीरे धीरे जांघें बंद कर लीं। वह कुछ कहना चाहता था मगर सामने आते चित्र को देखकर चुप रहा। एक क्षण के लिए मेरे भगों पर उसके मुँह का दबाव महसूस हुआ और मैंने जांघें अलग कर लीं।

उसने जरूर समझा होगा कि मैं उसे चाटने को बोल रही हूँ लेकिन मैंने उसका चेहरा हटा दिया तो वह मुझे सवालिया निगाह से देखने लगा। मैंने आइना उठाकर उसके सामने कर दिया, देखकर वह मुस्कुरा पड़ा, कच्चे गीले रंग से उसके दोनों गालों पर उभर आए थे स्वस्तिक और कलश के निशान।

“हैप्पी होली” मैंने कलाकार को कहा।

“वेरी वेरी हैपी होली!” उसने खुश होते हुए कहा। वह घुमा घुमाकर अपने चेहरे को आइने में देख रहा था- तुम भी किसी कलाकार से कम नहीं हो!

“मैं भी इसे दो एक दिन तक ऐसे ही रखूँगा.”

“अजीब नहीं लगेगा? लोग क्या कहेंगे?”

उसने मेरी आँखों में देखा और ना में सर हिलाया। मैं उसके गाल पकड़कर उसकी आँखों में देखने लगी। मुझे कैसा तो महसूस हुआ। उसे देखते देखते ही मैंने आँखें मूंद लीं। पीछे लद गयी और पुनः सिर पीछे टिका लिया। सिर पीछे करते ही योनिस्थल कुछ और आगे बढ़ गया।

कुछ ही क्षणों में मुझे वहाँ पर गर्म साँस का स्पर्श महसूस हुआ। आश्चर्य! उसका सिर तो बहुत पहले से मेरी पुसी के करीब था। लेकिन सांस पर मेरा ध्यान अब गया था। और अगले क्षण ही ठीक होंठों की फाँक में एक छुअन। बेहद हल्की, बेहद सरसरी तौर पर।

लेकिन उतने में ही मेरी जाँघें थरथरा सी गईं। मुझे लगा, मेरी योनि की ‘पलकें’ खुल गई हैं जबकि आँखों की पलकें बंद हैं। खुली पलकों के भीतरी किनारों पर वह छुअन एक साथ आई थी। यह क्या थी? होंठ या जीभ?

“मैं तुम्हारा शोषण तो नहीं कर रहा हूँ?” उसका प्रश्न मेरे कानों में पड़ा।

“तुम बहुत अच्छे मनुष्य हो…”

“वेरी केयरिंग एंड…”

“एंड…?”

“खूबसूरत जवाँ भी” हिम्मत करके मैंने कह दिया।

कुछ देर तक कुछ नहीं हुआ, मैं प्रत्याशा में सांस लेती छोड़ती रही। उसने मुझे मोबाइल पकड़ाया, थरथरा रहा था, मैंने अनिच्छा से देखा, उसी का फोन था। इच्छा हुई काट दूँ, पर हेल्लो कर दिया.

“तुम कहाँ हो? तुम्हारे पीजी में गया, तुम वहाँ नहीं थी।”

मैं कुछ नहीं बोली।

“प्लीज, बोलो ना… मैं सॉरी बोलता हूँ, बोलो ना?”

मुझे गुस्सा आया, मैंने फिर काट दिया।

“तुम करो” मैंने कलाकार को कहा।

वह हिचकता रहा- आर यू श्योर?

“तुम्हें बुरा लगता है तो छोड़ दो।”

“आई लव इट…” उसने अपने होठों पे जीभ फिरायी।

“तो करो ना…”

फोन फिर थरथराया- ओफ्फ! क्या है?

“प्लीज फोन बंद मत करना। सॉरी सॉरी सॉरी, तुम कहाँ हो?”

एक चुम्बन मेरे (भग) होठों पर पड़ा; आ…ह।

“मैंने तुम्हें बता दिया था.” मैंने फोन में कहा।

“उसी टैटू वाले के यहाँ?”

दूसरा चुम्बन – होठों के मध्य से ऊपर।

“क्या करोगे जानकर?” मैंने अपने गुस्से पर काबू पाने की कोशिश की।

“प्लीज, बोलो ना।”

“हाँ… और कुछ कहना है?”

“क्या कर रही हो वहाँ?”

उस वक़्त मैं तीसरा चुम्बन प्राप्त कर रही थी, उसकी घबराहट पर हंसी आई।

तभी उसने कहा- आई लव यू!

और मेरा गुस्सा फिर भड़क गया- जानना चाहते हो क्या कर रही हूँ? फोन मत बंद करना, चालू रखो।

मैंने सर उठाकर देखा, कलाकार का सर झुका हुआ था। चौथा चुम्बन होठों के मध्य से नीचे आया, वहाँ जरा और खुली हुई फाँक में घुसकर… और यह मीठा था। मैंने फोन में सुनाने के लिए जरा जोर से आह भरी- आ….ह…!

“क्या कर रही हो?” उसने फोन में पूछा।

जवाब में पुनः मैंने आह भरी। चुम्बन की चोट खाली नहीं जा सकती थी। अगली बार और अन्दर की कोमल सतहों पर चाट… मेरी और बड़ी कराह!

“क्या कर रही हो, बोल ना?”

“मैंने बताया था।”

“नहीं मालूम, बोलो ना?”

“मुझे परेशां मत करो… बस सुनते रहो!” कहते कहते मेरे मुँह से सिसकारी निकल गयी, मेरी भगनासा पर उसने जीभ फिरा दी थी।

मेरी आहों और सिसकारियों का सिलसिला बढ़ता जा रहा था। उसे स्त्री केंद्र को चूमना चाटना आता था।

“कहाँ पर हो? कौन सी जगह है?”

उत्तर मैंने अपनी आहों और कराहों से दिया।

“बताओ ना कौन जगह है?”

“फोन बंद कर रही हूँ।”

“प्लीज… सिर्फ जगह बता दो… प्लीज।”

मैंने कलाकर से कहा- वह जगह पूछ रहा है।

कलाकार ने पूछा- कोई प्रॉब्लम तो नहीं करेगा?

उसके मुँह के आसपास मेरा गीलापन चमक रहा था।

“पता नहीं!” मैंने कहा।

“मेरा एड्रेस फॉरवर्ड कर दो। मैं नहीं डरता.”

वह फिर चाटने लगा। मैंने उसे रोका और एड्रेस फॉरवर्ड कर दिया; मैं उसे जलाना और दण्डित करना चाहती थी। कलाकार ने मेरे हाथ से फोन लेकर रख दिया और पुनः भक्ति भाव से काम में लग गया। मुझे बहुत अच्छा फील हो रहा था, पता लग रहा था क्यों मेरी सखियाँ इसके लिए बार बार कहती थीं।

“वो आकर मार-पीट तो नहीं करेगा?”

“बड़ा पोजेसिव है!”

लेकिन उसके इसी स्वामित्व भाव की तो मैं उसे सजा देना चाहती थी।

“आ…ह…!” मैंने अपने पेडू को और आगे ठेलने की कोशिश की। मेरी मुड़ी हुई टांगें दुखने लगी थीं। लेकिन इस आनन्द के सामने ये दर्द क्या था!

“आ…ह!”

वह दबाव के साथ कुरेद रहा था। कोमल होंठों और जिह्वा की ये रगड़ अद्भुत थी।

“आह आह आह! कुछ और बढ़ो यार!”

मेरी भगनासा को उसने जड़ के आसपास से घेरा और होंठों के नीचे दांत छिपाकर कचड़ दिया।

“अरे ब्बा…..!” मैं घबरा सी गयी।

उसने भगनासा को छोड़ दिया, मुझे रहत मिली। उसने ये क्रिया फिर से दुहराई, लेकिन इस बार उसने भगनासा को छोड़ा नहीं, बल्कि जोर जोर चूसने लगा। आनन्द पीड़ा में बदल गया और मैं उससे निकलने के लिए छूटने लगी। आह आह आह आह… मैं रोने के जैसी कर रही थी। मैंने उसे छोड़ने के लिये कहा तो उसने मेरे नितम्ब पकड़ लिए।

मैंने अंतिम जोर लगाया- ओ…ह, छोड़ो!

उसने छोड़ दिया। पहला चरम सुख! मैंने धीरे धीरे आँखें खोलीं, नजर डबडबा गयी, आंसू निकल आए थे। वह मेरी आँखों में देख रहा था। उसने मेरा रुमाल लिया और मेरी आँखें पौंछीं, झुककर मुझे चूमा। मेरी इच्छा हुई कि थैंक्स बोलूँ। अपनी योनि की गंध उसके मुँह पर पाकर शर्म आई और अच्छा लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“चलो अब चलें… वो कभी भी आ सकता है…”

मैं यही तो चाहती थी, बॉयफ्रेंड से बदला लेना। मैं उसकी कमर के बटन खोलने लगी।

“तुम करना चाहती हो?”

जवाब में मैंने उसकी चेन खींच दी। एक ये है, इस अवस्था में भी यह मुझसे पूछ रहा है कि चाहती हूँ कि नहीं। एक वो है, मेरा बॉयफ्रेंड… जबरदस्ती कर रहा था। कितने अलग हैं दोनों! मैंने उसकी पैंट को कमर से नीचे खिसका दिया। चड्डी में बहुत बड़ा उभार था, पता नहीं, इस मामले में कैसे हैं दोनों। उसने पैंट पैरों से बाहर निकल लिया। मैं चड्डी के अन्दर की वस्तु के प्रति डरी हुई थी। पता नहीं कितना बड़ा है।

वह मेरा इन्तजार कर रहा था- तुम निकालो इसे!

आख़िरकार मैंने हिम्मत करके उसकी कमर में उंगलियाँ फंसाईं और झटके से नीचे खींच दी, उछलकर लिंग बाहर आ गया। बाप रे… उस बॉयफ्रेंड के लिए मेरा गुस्सा और बढ़ गया; उसकी खातिर मुझे इतना बड़ा अपने अंदर लेना पड़ेगा।

कलाकार ने मेरे टॉप को उतारने के लिए पकड़ा। अब ये मामला प्यार का होता था, मैं ब्वायफ्रेंड से प्यार का बदला नहीं लेना चाहती थी, उसने मेरे साथ विश्वासघात नहीं किया था। उसने मेरे साथ सेक्स करने की कोशिश की थी। मुझे सेक्स का ही बदला लेना था, मैंने कलाकार को रोक दिया- रहने दो।

मैंने कलाकार के चेहरे को पकड़कर उसे चुम्बन दिया। चुम्बन उसकी कला-प्रतिभा, सज्जनता और शालीनता के लिए थे। फिर चुम्बन, फिर चुम्बन, और क्रमशः लम्बे होते चुम्बन। इस सुख को अपने ब्वायफ्रेंड से पति के रूप में सुहाग सेज पर पाना चाहा था।

मैं उसको मन में दिखाती हुई और जोर से चुम्बन ले रही थी। दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने कलाकार की कमर अपनी तरफ खींची। उसका लिंग अब तक मेरे योनि होंठों को कभी छू, कभी अलग हो रहा था। मैंने उसे अपने पर दबा लिया।

“कम इन।”

“दरवाजा खुला है?” मैंने कलाकार से पूछा।

“यस, इट्स ओपन!” कलाकार ने लिंग को दाहिने बाएँ हिलाकर मेरे योनि द्वार को ढूंढते और उस पर लिंग को सेट करते हुए कहा।

“तब भी तुम इतना कर गए? डर नहीं लगा?”

“सिर्फ तुम्हारे लिये… अगर तुम्हें डर नहीं लगा तो मुझे कोई डर नहीं?”

“क्या कोई लड़की ग्राहक यहाँ आई है?” ब्वायफ्रेंड की ऊँची आवाज बाहरी कमरे से आई।

हम दोनों में से कोई नहीं बोला… खुद आएगा।

“अन्वेषा, यहाँ हो?” कहता हुआ वह अंदर आया।

मैंने कलाकार की कमर पकड़ ली; वैसे भी उसे बढ़ावा देने की जरूरत नहीं थी, उसने धक्का दिया, लिंग होंठों के पार हो गया। स्स्स… मैंने दाँत पर दाँत रख लिये। पहला खिंचाव! ओह…!

“ये क क्क क्या कर रही हो!!!” विस्मय से उसकी आवाज हकला सी गई।

कलाकार शायद मुझे फैलने देने के लिए रुकना चाहता था। मैंने उसे लगातार दबाते रहने के लिए प्रेरित किया।

“क्या यह तुम्हारा पहली बार है?”

पता नहीं मैंने उसे बताया था कि नहीं… पर इस सवाल में उसके पौरुष की घोषणा थी। मेरे प्रेमी के सामने मुझसे पूछ रहा था- इज दिस योर फर्स्ट टाइम?

उसके गालों पर मेरे स्वस्तिक और कलश चमक रहे थे। मेरा ब्वायफ्रेंड स्तम्भित खड़ा था। अवाक! कलाकार के गालों, उसके नंगे नितम्बों और मेरी खुली जांघों को देखता।

“हाँ…” मैंने कहा।

फिर मैंने ब्वायफ्रेंड से पूछा- क्या तुम मुझे प्यार करते हो?

“अन्वेषा, प्लीज…” उसके बोल फूटे।

“किक मी हार्ड बास्टर्ड…!” मैं कलाकार पर चिल्लाई।

उसकी इतनी शराफत असह्य थी, मैं कोई खुरदुरा, कठोर व्यवहार चाहती थी, मैं अपने प्रति गुस्से से भरी थी। कलाकार ने जोर से धक्का दिया और मेरे कौमार्य पटल को फाड़ता जड़ तक घुस गया। दर्द से मेरी चीख निकल गई ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’

“रुकना मत!” मैंने दाँत पीसते हुए कहा।

मेरा प्रेमी सामने खड़ा है। कलाकार जैसे जागा और जोर जोर धक्के लगाने लगा। मैं दाँत पीसती दर्द से चिल्लाती रही और सुन सुनकर वह और जोर जोर ठोकता रहा।

मैंने चिल्लाकर ब्वायफ्रेंड से पूछा- तुमने मुझे बताया नहीं… क्या तुम मुझे प्यार करते हो?

मैं धक्कों में ऊपर नीचे हो रही थी, और पेड़ू पर थप थप जोर जोर बज रहा था। कलाकार अब और नहीं थम सका, गुर्राता हुआ मेरे अंदर छूटने लगा- हुम्म… हुम्म… हुम्म… ‘थप थप थप…’ वीर्य की लहरें खून के साथ मिलकर सब तरफ लिथड़ने लगीं।

कुछ छींटे मेरे चेहरे पर आ पड़े। पूरी ताकत से ठेल ठेलकर उसने अंतिम बूंद तक खाली किया और मेरे गर्भ-कलश को अपने बीज से भरकर बाहर निकल आया। उसके लिंग पर गाढ़े लाल द्रव की मोटी लकीरें खिंची थीं। मेरे जीवन का पहला पुरुष अंग, मेरा उद्घाटन करने वाला।

मेरा प्रेमी भी उसे देख रहा था। मेरी क्षत-विक्षत योनि से उड़ेल-उड़ेलकर लाल द्रव निकल रहा था। कुर्सी की सीट गंदी हो गई थी। मैंने रूमाल छेद पर दबा लिया। घाघरे को खींचकर पैरों को ढक लिया। कलाकार बाथरूम की ओर प्रस्थान कर गया।

ब्वायफ्रेंड जैसे किसी आवेग से दौड़कर मेरे पास आया- ये क्या कर लिया?

“बड़े उतावले थे… कर लो तुम भी!”

“प्लीज, इतना इंसल्ट न करो।”

“अब बोलो ‘आय लव यू’!”

“प्लीज अन्वेषा!”

“मैंने इतना तुम्हारे लिए किया…!” भावावेग से मेरा गला रुंध गया।

“मुझे मालूम नहीं था कि तुम मेरे कहने का बदला इस तरह लोगी।”

“मैं अपनी जान भी ले लूंगी। मैंने क्या सोचा था, तुमने क्या किया ?

कलाकार बाहर आया, कपड़े पहने, पैंट कसी, उसके गालों पर मेरी योनि के प्रथम स्पर्श के स्वस्तिक कलश बड़े प्यारे लग रहे थे। उस क्षण कलाकार मुझे बहुत अपना-सा लगा। मैं उठी और बाथरूम चली गई। घाघरा भीग गया था। दूसरा घाघरा नहीं था। बाहर कमरे में गई तो देखा, मेरा ब्वायफ्रेंड कलाकार से कुछ बोल रहा था।

कलाकार ने मुझे देखकर कहा- मैडम, ये मुझे मेरी कलाकारी के पैसे चुकाना चाह रहा है। मैं आपकी इजाजत के बगैर पैसे कैसे ले सकता हूँ।

ब्वायफ्रेंड- प्लीज… मुझे देने दो!

कलाकार- मैंने कहा है कि मैं इस काम के पैसे तभी लूंगा, जब उसे पसंद किया जाएगा।

ब्वायफ्रेंड- मुझे यह कलाकारी बहुत पसंद आई है, और…

मैंने लज्जा से सिर झुका लिया। पैसे अदा करके ब्वायफ्रेंड मेरी तरफ आया- थोड़ी देर रुकना।

वह जल्दी से नया घाघरा लेकर आया। मैंने आर्टिस्ट के स्वस्तिक-कलश छपे गालों को चूमा और ब्वायफ्रेंड के साथ बाहर निकल गई। आगे क्या हुआ वह सपने जैसा है। उसने उस दिन पता नहीं कैसे… तुरत-फुरत एक बहुत ही खूबसूरत होटल का प्रबंध किया और मुझे वहाँ ले गया। होली की वो रात हमने साथ मनाई। मेरी योनि का दीपक सचमुच प्यार के तेल से प्रज्वलित हो गया।

 देर रात जब अंधेरा दीपकों दूर हो रहा था, मेरी योनि में एक नई सुबह का आगमन हो रहा था। मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे सारी रात जमकर भोगा था उसका स्टैमिना वाकई लाजवाब था मैं तो सारी रात हवा में उड़ती रही। अब मुझे पता चला मैं क्या मिस कर रही थी।

मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझे बहुत प्यार से चोदा था कोई जल्दबाजी नही बड़े आराम से। प्यार क्या होता है मैं आज जान गई थी। मेरे उसे चिट करने पर भी वह शांत रहा था। कलाकार से भी ज्यादा मजा मेरे बॉयफ्रेंड से आया था।

सबेरे जब मैं उठी तो बेड पर मैं अकेली थी मेरा बॉयफ्रेंड वहां नही था मुझे लगा वह बाथ रूम में होगा मैंने वहां देखा तो वहाँ भी नही था उसके कपड़े भी नही थे। अब मैं घबरा गई मैंने उसको कॉल किया उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था सामने टेबल पर लेटर और नोटों की गड्डी रक्खी थी मैंने झट से उठाकर उसे पढ़ना स्टार्ट किया। उसमे लिखा था।

अन्वेषा,

…मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ तुमसे प्यार किया किसी दूसरी लड़की की तरफ देखा भी नही जब की मुझे बहुत सी लड़कियो ने प्रपोज किया था। तुम्हारी कई सहेलियां मेरे साथ सोना चाहती थी। पर मैं अपना पहला सेक्स तुम्हारे साथ करना चाहता था।

इसलिये जब तक तुम ना चाहो तुम्हे छुआ भी नही मैं तुम्हारे प्रति पूरा वफादार रहा तुम्हारी हर जिद पूरी की जब कोई, जिसे हम सिर्फ अपना मानते है, वह अगर किसी को अपना निजी अंग दिखा दे, तो किसी का भी असहज होना स्वाभाविक है, वही मैं भी हुआ.

पर बाद में सोचने पर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो मैं पागलो की तरह तुम्हे कॉल करता रहा, पर तुम्हने कोई जवाब नही दिया, फिर तुम्हने मुझे वह सजा दी जिसका मैं हकदार नही था, तुम्हने अपने गुस्से में यह भी नही सोचा, कि मैंने कभी तुम्हारे साथ बुरा व्यवहार नही किया था.

पर तुम मेरे सामने, अपने होने वाले पति के सामने, अपना कौमार्य एक अंजान आदमी को सौपा, और तुम्हे उसका कोई अफसोस नही था, तुम उसे सही मान रही हो, मैं संकीर्ण मनोवृत्तियों वाला इंसान नही हु, पर मैं समझ गया हूं कि तुम कभी भी एक वफादार पत्नी नही बन सकती, जो अपने होने वाले पति के सामने किसी अंजान आदमी से चुद सकती है, वह जरा से गुस्से में किसी के साथ भी सो सकती है.

तुमने मेरे बारे में एक बार भी नही सोचा, मुझ पर क्या गुजरेगी पर तुम्हे तो गुस्सा था, तुम खूबसूरत हो तुम्हे कोई भी जीवन साथी मिल सकता है, पर मैं नही, हो सके तो मुझे माफ़ करना, दो लाख रुपये छोड़ कर जा रहा हु, तुम्हारा बिल, हा कल जो हुआ उसकी वजह से, मेरी नजर में तुम वही हो, एक रण्डी.

मेरी इच्छा थी, कि पहला सेक्स मैं तुमसे ही करूँगा इसलिये तुम्हे होटल लेकर आया और पहली और आखरी बार तुमसे प्यार किया और उसकी कीमत भी देकर जा रहा हु। कल और आज जो भी हुआ है उसका मैंने वीडियो बनाया है,ना.. ना.. ना.. गलत ना समझना तुम्हे ब्लैकमेल करने के लिये नहीं.

कल जो मेरे सामने हुआ, वह मेरे प्यार का खून था और आज उसका अंतिम संस्कार था, यह वीडियो देखकर मैं तुम्हारी बेवफाई याद करता रहूंगा, मुझे मिलने की कोशिश मत करना मै यह देश छोड़कर जा रहा हु, मुझे विदेश में अच्छी जॉब का ऑफर आया था. जो मैंने कबूल किया था, शादी करके हम वहा जाकर बसने वाले थे, पर अब अकेला जा रहा हु, बस यही दुँवा करता हु, जो तुमने मेरे साथ किया वह किसी और के साथ मत करना, कभी अपने दिल से पूछना, मुझे जलील करके तुम आखीर तुम साबित क्या करना चाहती थी, फिर भी मेरी यही दुवा है कि तुम हमेशा खुश रहो।

…तुम्हारा कोई नही

लेटर पढ़ कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई मैं वही जमीन पर गिर पड़ी यह गुस्से में मैंने क्या कर दिया। आज मैंने अपने प्यार को खुद की बेवकूफी से खो दिया। कितना प्यार करता था वह मुझसे और जरा सी गलती पर मैंने उसे कितना जलील किया। जिसका वह हकदार नही था। आज मैं अपनी ही नजर मैं गिर गई थी। मैंने कल अपने लिये ठीक ही सोचा था हा मैं एक रण्डी ही हु। मेरे प्रेमी ने मुझे एक रण्डी की तरह चोदा और पेमेंट करके चला गया। मैंने अपने हाथों से अपने ही प्यार का खून किया है।

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